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सकारात्मक अहिंसा
सर्वहितकारी प्रवृत्ति की रुचि सहज निवृत्ति के लिए अपेक्षित है और सहज निवृत्ति काम का अन्त करने का साधन है । साधन में कर्तृत्वभाव तभी तक रहता है, जब तक साधक का समस्त जीवन साधन नहीं बन जाता । साधक का समस्त जीवन तब तक साधन नहीं बन सकता, जब तक वह करने और पाने की रुचि में आबद्ध रहता है ।
व्यक्तित्व का अभिमान गलाने के लिये सर्वहितकारी प्रवृत्ति की अपेक्षा है । सर्वहितकारी प्रवृत्ति हमें ऋण से मुक्त कर सुन्दर समाज का निर्माण करती है और निवृत्ति हमें स्वाधीनता प्रदान कर अनन्त से भिन्न करती है, जिसमें वास्तविक जीवन है ।
सर्व प्रकार के संघर्ष का प्रन्त सर्वहितकारी प्रवृत्ति में निहित है । क्योंकि सर्वहितकारी प्रवृत्ति स्नेह की एकता प्रदान करती है । प्रवृत्ति स्वरूप से छोटी हो या बड़ी; परंतु उसके मूल में यदि सर्वहितकारी भाव है तो वह विभु हो जाती है । वह विश्व शान्ति की स्थापना में समर्थ है; क्योंकि स्नेह की एकता वह काम नहीं करने देती जो नहीं करना चाहिये और वह स्वतः होने लगता है जो करना चाहिये । उसके होते ही जीवन में व्यापकता या जाती है । जिसके श्राते ही सब प्रकार की आसक्तियों का अन्त हो जाता है । आसक्तियों का अन्त होते ही उस दिव्य चिन्मय प्रीति का उदय होता है, जो अपने ही में अपने प्रीतम को मिलाकर नित-नव-रस प्रदान करती है, यही हमारी वास्तविक आवश्यकता है । ( जीवन-दर्शन, पृ 161-164)
(2)
प्राकृतिक नियमानुसार प्रत्येक प्रवृत्ति का आरम्भ और अन्त है । ऐसी कोई प्रवृत्ति है ही नहीं, जिसका आरम्भ हो और अन्त न हो । इससे यह स्पष्ट विदित होता है कि कोई भी प्रवृत्ति प्रखण्ड नहीं हो सकती । जो अखण्ड नहीं हो सकती, वह सहयोगी साधन भले ही हो, उसे साध्य नहीं कह सकते । इस दृष्टि से प्रत्येक प्रवृत्ति, निवृत्ति की पोषक है । जिस प्रवृत्ति का परिणाम निवृत्ति नहीं है, वह प्रवृत्ति दुषित है, त्याज्य है । व्यक्तिगत सुख की प्राशा को लेकर जो प्रवृत्ति
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