Book Title: Sakaratmak Ahimsa
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 394
________________ (स) संस्कृत-साहित्य-वचन (1) सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः । ___ सर्वे भद्राणि पश्यन्तु, मा कश्चिद् दुःखभाग् भवेत् ॥ सभी सुखी हों, सभी नीरोग हों, सभी कल्याण को देखें, कोई भी प्राणी दुख का भागी न बने । (2) अष्टादशपुराणेषु व्यासस्य वचनद्वयं । परोपकारः पुण्याय, पापाय परपीडनम् ॥ अठारह पुराणों में व्यास के दो वचन हैं-परोपकार से पुण्य होता है तथा परपीडन (दूसरों को पीडा देने) से पाप होता है । (3) अयं निजः परो वेति, गणना लघुचेतसाम् । ___ उदारचरितानां तु वसुधैव कुटुम्बकम् ॥ यह अपना है, वह पराया है-इस प्रकार की गणना क्षुद्र हृदय वाले लोग करते हैं। उदार चरित्र वाले व्यक्तियों के लिए तो सम्पूर्ण पृथ्वी ही परिवार होती है। (4) पापान्निवारयति योजयते हिताय, गृह्य निगृहति गुणान् प्रकटीकरोति आपद्गतं च न जहाति ददाति काले, सन्मित्रलक्षणमिदं प्रवदन्ति सन्तः ॥ जो अपने मित्र को पाप कार्य करने से रोकता है एवं हितकारी कार्य में उसे प्रवृत्त करता है, मित्र की गुप्त बात को छिपाता है एवं गुणों को प्रकट करता है, आपत्तिग्रस्त मित्र का त्याग नहीं करता एवं समय पर उसकी सहायता करता है उसे ही सज्जन पुरुषों ने सन्मित्र कहा है। (5) आत्मनः प्रतिकूलानि परेषां न समाचरेत् । जो प्राचरण स्वयं को पसन्द नहीं हो वैसा दूसरों के साथ कभी नहीं करना चाहिए। . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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