Book Title: Sakaratmak Ahimsa
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 400
________________ 350 ] 88888 58 5 58 16 60 14 64 12 67 3 67 24 69 27 75 4 76 12 उदाहरण 76 अन्तिम हाती 81 अन्तिम आयुकर्म 83 9 जबकि 83 10 कषायों 94 15 98 5 99 4 100 8 103 18 109 16 110 28 112 12 114 22 121 1 126 23 126 24 131 6 137 6 137 अंतिम 151 15 152 26 152 28 मणुयत्तंणिफलं श्रतिरौद्र ऐसा उतनी Jain Education International सुख सभ्य यस्य लेकिन अभाव पहुँचकर अपालाप जायगा गुण मंत्री अघाती कर्म की । भावातीत वृद्धि अग अनिष्ट क्षत्र सचित्त व रुणा धम प्रीत्या तिशुद्ध मनसा जिणवददिट्ठ पूजा मुक्ख मणुयत्तं णिप्फलं श्रार्तरौद्र एसा उतना दुःख सभ्यता यस्तु उद्धरण होती फलस्वरूप आयुकर्म और भावों सकारात्मक हिंसा प्रभाव पहुँचने पर अपलाप जायेगा गुणे मैत्री अघाती कर्म की भवातीत वृद्धि की हेतु अंग घनिष्ठ क्षेत्र संचित करुणा धर्म प्रीत्यातिशुद्ध मनसा जिणवरदिट्ठ पूजा मुक्खं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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