Book Title: Sakaratmak Ahimsa
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 399
________________ पृष्ठ पंक्ति 10 9 26 10 3 15 24 18 27 22 7 35 6 41 6 41 29 46 7 39 47 47 49 50 50 50 7 8 423 5 2 52 53 13 56 14 57 7 57 15 Jain Education International अशुद्ध सगुद्णों धम्मोदया विसुद्धो रक्खाणं शुद्धि पत्र क माह के कम होने उड़कर करत जिस से वाले दान देना या न देना दोनों ही स्वार्थसिद्धि परानुग्रबुद्ध्या वह्न दह्य जाता है होता है बाधक होता सुपात्र के लिए दिया जिनेन्द्र कुमार वर्णी एवं ण हुतो अइबुड्ड भुङ्क्ते करतिते 58 1 58 4 पुणलच्छिं शुद्ध सद्गुणों धम्मो दयाविसुद्धो raaणं को मोह के कम होने बनकर करता जिसके सेवा लेने दान लेना व दान न देना दोनों ही संग्रह के हेतु होने से सर्वार्थसिद्धि परानुग्रहबुद्ध्या वह्न ेर्दाह्य जाता होता बाधक होता, परन्तु ऐसा नहीं होता है। दिया ( यह नहीं है ) ण हु तस्स श्रइवुड्ढ भुङ्क्ते करति ते पुण लच्छिं For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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