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अशुद्ध
सगुद्णों धम्मोदया विसुद्धो रक्खाणं
शुद्धि पत्र
क
माह के कम होने
उड़कर
करत
जिस
से वाले
दान देना या न देना
दोनों ही
स्वार्थसिद्धि परानुग्रबुद्ध्या वह्न दह्य
जाता है
होता है बाधक होता
सुपात्र के लिए दिया जिनेन्द्र कुमार वर्णी एवं
ण हुतो
अइबुड्ड
भुङ्क्ते
करतिते
58 1
58 4 पुणलच्छिं
शुद्ध
सद्गुणों धम्मो दयाविसुद्धो
raaणं
को
मोह के कम होने
बनकर
करता
जिसके
सेवा लेने
दान लेना व दान न देना दोनों ही संग्रह के हेतु
होने से
सर्वार्थसिद्धि
परानुग्रहबुद्ध्या
वह्न ेर्दाह्य
जाता
होता
बाधक होता, परन्तु ऐसा नहीं होता है।
दिया
( यह नहीं है )
ण हु तस्स
श्रइवुड्ढ
भुङ्क्ते
करति ते
पुण लच्छिं
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