Book Title: Sakaratmak Ahimsa
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 398
________________ 348 ] सकारात्मक अहिंसा दुनियावी दौलत तो नीच आदमियों के पास भी देखी जाती -तिरुवल्लुवर (10) जो खुदा के बन्दों के प्रति दयालु है, खुदा उसके प्रति दयालु -मुहम्मद (11) कितने देव, कितने मजहब, कितने पंथ चल पड़े हैं, लेकिन इस गमगीन दुनिया को सिर्फ दयावानों की जरूरत है। ___-विलकॉक्स (12) जीवन का अनुरोध भरा पाठ, चाहे इसे हम जल्दी सीखें या देर से, यह है कि देने से दाता की पहले और सबसे अधिक श्रीवृद्धि होती है और उसमें साधुशीलता आती है। -अज्ञात (13) अगर तू किसी एक आदमी की भी तकलीफ को दूर करे तो वह ज्यादा अच्छा काम है बजाय इसके कि तू हज्ज को जाय और रास्ते की हर मंजिल पर एक हजार रकअत नमाज पढ़ता जाय। __-सादी (14) सब मखलूक (सष्टि) अल्लाह का कुनबा है और उन सबमें अल्लाह को सबसे प्यारा वह है जो अल्लाह के इस कुनबे का भला करता है। -मुहम्मद (15) महान् सेवा यह है कि हम किसी जरूरतमन्द की इस तरह मदद करें कि वह अपनी मदद खुद कर सके। --अज्ञात (16) परहित सरिस धर्म नहीं भाई। . परपीड़ा सम नहीं अधमाई । -रामचरित मानस (17) दया धर्म का मूल है, पाप मूल अभिमान । तुलसी दया न छोडिए, जब लग घट में प्राण ॥ -तुलसीदास (18) दया सुखांनी बेलड़ी, दया सुखांनी खान । अनंत जोव मुक्त गया, दया तणो फल जाण ॥ -जैन धर्म Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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