Book Title: Sakaratmak Ahimsa
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 392
________________ 342 ] सकारात्मक अहिंसा अर्थ -जो मुनि मोह, मद, गारव आदि से रहित हैं और करुणा भाव सहित हैं वे चारित्ररूपी खड्ग से पापरूपी स्तंभ का नाश करते हैं। (17) सो धम्मो जत्थ दया सोवि तवो विसयणिग्गहो जत्थ । दस-अट्टदोसरहिनो सो देवो णत्थि संदेहो ।। -नियमसार, गाथा 6 की टीका अर्थ-वह धर्म है जहाँ दया है, वह तप है जहां विषयों पर निग्रह है, वह देव है जो अठारह दोषरहित है, इसमें संदेह नहीं है । (18) 'धर्मः शर्मकरं दयागुणमयं' ॥ --आत्मानुशासन, 7 अर्थात्-दया गुण युक्त धर्म सुख करने वाला है। __ (19) धर्मो नाम कृपामूलं सा तु जीवानुकम्पना । अशरण्यशरण्यत्वमतो धार्मिक-लक्षणम् ।। –क्षत्रचूड़ामणि, 5.35 अर्थ--धर्म का मूल दया है और वह दया जीवों की अनुकम्पारूप है । अरक्षित प्राणियों की रक्षा करना ही धर्मात्मा का लक्षण है । (20) सम्मतस्स पहाणो अणुकंपा वण्णिो गुणो जम्हा । पारद्धिरमणसीलो सम्मत्तविराहनो तम्हा ॥ -वसुनन्दि श्रावकाचार, 94 अर्थ-सम्यग्दर्शन का प्रधानगुण अनुकम्पा अर्थात् दया है, अतः शिकार खेलनेवाला मनुष्य सम्यग्दर्शन का विराधक होता है । (21) पवित्रीक्रियते येन येनैवोज्रियते जगत् । नमस्तस्मै दयार्द्राय धर्मकल्पांघ्रिपाय वै ॥ 1 ॥ -(ज्ञानार्णव/धर्मभावना) अर्थ-जिस धर्म से जगत् पवित्र किया जाता है, तथा उद्धार किया जाता है और जो धर्म दयारूपी रस से आर्द्र है उस धर्मरूपी कल्पवृक्ष के लिये मेरा नमस्कार है । (22) तन्नास्ति जीवलोके जिनेन्द्रदेवेन्द्रचक्रकल्याणम् । यत्प्राप्नुवन्ति मनुजा न जीवरक्षानुरागेण ।। 57 ॥ __ -ज्ञानार्णव, सर्ग 8 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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