Book Title: Sakaratmak Ahimsa
Author(s): Kanhaiyalal Lodha
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 381
________________ परिशिष्ट (अ) जैनागम-वचन (सकारात्मक अहिंसा के पोषक उद्धरण) (1) धम्मे ठिो सव्वपयाणुकंपी। -उत्तरा. 13.32 धर्म में स्थिर होकर समस्त प्रजा पर (सर्व जीवों पर) अनुकंपा करने वाले बनो। (2) सव्वेहिं भूएहिं दयाणुकंपी। -उत्तरा. 21.13 सर्व जीवों पर दया और अनुकंपा का बर्ताव करो। (3) दयाधम्मस्स खंतिए। -उत्तरा. 5.30 क्षमापूर्वक दया धर्म का पालन करता है। (4) ताइप्रो परिणिव्वुडे । -दशवै. 3.15 दूसरों की रक्षा करने वाला मोक्ष का अधिकारी होता है । (5) दाणाणं सेढे अभयप्पयाणं। -सूत्रकृतांग, 1.6.23 जीवों को मृत्यु से बचाने रूप अभयदान सर्वश्रेष्ठ दान है । (6) मित्ती मे सव्वभूएसु । ---आवश्यकसूत्र सब जीवों के प्रति मेरा मैत्री भाव रहे । (7) पाणाणुकंपयाए जाव सत्ताणुकंपयाए संसारे परित्तीकए। __-ज्ञाताधर्मकथांग, प्रथम अध्ययन प्राण, भूत, जीव एवं सत्त्व पर अनुकंपा करने से संसार परीत होता है अर्थात् संसार में भ्रमण सीमित हो जाता है । (8) ..समं सघडितव्वं जइतव्वं परिक्कमितव्वं अस्सिं च नो Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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