Book Title: Risht Samucchaya
Author(s): Durgadevacharya, A S Gopani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 195
________________ 82 NOTES OT: स जयी भवति । अथ पुनर्विशेषमाह "यथा शेषेऽत्र संख्यांके चतुर्भिः शेषिते सति विषमे हीनके हानिः समा हीने जयो भवेत् । ओजे समेऽधिके शेषे जयहानी पृथक् तयोः” योधयोराज्ञोर्विशमेऽधिके जयः समेऽधिके हानिः । “एतचक्रवरं प्रोक्तं सद्यः प्रत्ययकारकम्" ॥ ८ ॥ ९ ॥ १० ॥ इति समरविजये आयचक्रम् । ॥आयचक्रम् ॥ १२ १.५ | २७ ब धन | प भ व श | प स ह (Pp. 114-116). There is another passage also from the same book dealing with the same point : ध्वाक्षश्वारासभवृषगजसिंहध्वजानलाः । यथोत्तरबलाः सर्वे ज्ञातव्याः स्वरपारगैः ॥ ५ ॥ प्रभौ योधे पुरे देशे मित्रनारीगृहेषु च । आयाधिके भवेल्लाभो न लाभो बलवर्जिते ॥ ६ ॥ ध्वजो धूमोऽथ सिंहः श्वा सौरभेयः खरो गजः । ध्वांक्षश्चेति क्रमेणैव आया अष्टौ दिगष्टके ॥ १ ॥ प्रतिपदाधुदीयंते तिथिभुक्तिप्रमाणतः ।। अहोराने पुनः सर्वे यामभुक्त्या भ्रमति च ॥ २॥ आया वर्गाष्टके ज्ञेया दिगष्टकक्रमेण च । स्वोदये मृत्युदं ज्ञेयं सर्वकार्येषु सर्वदा ॥ ३ ॥ ॥ आयचक्रम् ॥ ध्वज ध्वांक्ष ८।३० २।१० गज सिंह ३।११ ७/१५ खर । वृष श्वा ६।१४। ५।१३ , ४११२ (pp. 214-215). The ACSS has some passages illustrating the point under consideration. They are as follows : Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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