Book Title: Risht Samucchaya
Author(s): Durgadevacharya, A S Gopani
Publisher: Bharatiya Vidya Bhavan

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Page 228
________________ रिष्टसमुच्चय 115 धय-धूम-सीह-साण-२०५. उ. | पंचदहे वि तिहीओ १९६. पू. धरिऊण आउरं पुण १४६. उ. पंचदिणो णाय[ वो] २२९. उ. धावंति हु गहिएणं ६२. उ. पंचवि कूरगहेहिं २३७. उ. धिदिणासो सदिणासो ३६. पू. पक्खं धणि?रिक्खे २४९. उ. धूमंतं पजलंतं ८०. पू. पक्खं पुणन्वसुम्मि अ २४५. उ. धूम धओ दंखस्स य २१६. उ. पक्खालाविय देहे (हे)८६. उ. धूमस्स य साण खरो २१६. पू. पक्खालिऊण देहं ४३. पू. धूमायंतं पिच्छइ ५५. पू. पक्खालिऊण देहं ७०. पू. धूमो सयलायाणं २०७. पू. पक्खालित्ता देहं १३७. पू. धूमो सीह-धयाणं २१७. पू. पक्खालिय करचरणा- १५४. पू. पक्खालिय करजुअलं १५५. उ, नंदा भद्दा [य] जया २२८. पू. पक्खालिय करजुअलं १९३. पू. नक्खत्तं तह रासी २३७. पू. पक्खालियनियदेहो १८१. पू. नट्ठो भग्गो म मओ १८७. पू. पञ्चक्खं स्वत्थं १३०. उ. नवनवइ सहस्साई ७. उ. पच्छा पहायसमए २०१. पू. नव नव बिंदु तिवारं २२० पू. पडियस्स य रोइस्स य २५१. उ. न सुणेइ कमघोसं २९. उ. पडिवयआइदिणाई १५७. पू. महरोमा सडंदि य २१. उ. पडिवय बिदिया तिदिया २२८. उ. महुएइ गाढबंधं २३. उ. पढमं गोमुत्तेणं १५५. पू. न हु जाणइ नियअंग २५. पू. पढम सरीरविसयं १३६. पू. न हु पिच्छइ नियजीहा ३७. पू. पढमा(°मं) हि रेहअंक २०४. उ. महुसुणह सतणुसई १३९. पू. माउणं आएसं २१८. उ. पणमंतसुरासुरमउलि-१. पू. नाणामेअविभिन्नं ४२. पू. पणरह वामकरम्मि य १५६. पू. नाणाभेयविभिनं १४८. पू. पण्हगयं पुण भणियं ६९. उ. माणारोयाकिण्णो ६. उ. पण्हया(°हा)लस्स य लग्गं २५०. 3. भाणासस्थमएणं ४२. उ. पण्हसवणेण जावं १७१.पू. मामेणं सिरिदुग्गएव विदिओ २५८ (इ). पत्तंमि अ मणुअत्ते ३. पू. मायग्वा सा पयडा ७३. उ. पत्ते जिणिंदधम्मे ४. पू. भासग्गे थणमझे ९८. पू. पभणेइ निसा दिअहं ५८. पू. मासाएँ तिमि दिभहा ३७. उ. परछायाए णूणं ९४. उ. निश्रछाया गयणयले ९९. पू. परलोअसाहणढे ८. उ. मियछायं(या) परछाया ७३. पू. परिवारस्स य मरणं १२०. उ. निग्वाविम धुप्पं तो १२५. उ. पस्सिजइ भालयलं २०. उ. मिसुणिजह कि बहुणा १८५. उ. पावगहा मुह-पुच्छे २२३. उ. मिसुणिज हु सुपयस्थं ४०. उ. पिंगल सिही य ढिंको १७५. पू. भीला पीया किण्हा ८१. पू. पिंडत्थं च पयस्थं १७. पू. पिच्छ(च्छे)इ आउरो सो ८४. उ. पठरविणे(°णा) निहिडे(ट्ठा) २४६. पू. पिच्छेइ अण्णवणं १४२. पू. पंचदस तस्स दियहे ३३. उ. । पुजित्ता जिणनाहं ४३. उ. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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