Book Title: Revati Dan Samalochna
Author(s): Ratnachandra Maharaj
Publisher: Shwetambar Sthanakwasi Jain Vir Mandal

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Page 4
________________ प्राक्कथन " जैनें जयतु शासनम् ” भगवान् महावीर का शासन जयवन्त बर्तो, विजयशाली हो ऐसी भावना प्रत्येक जैन में होती है— होनी चाहिये ! तीर्थंकरों के युग में उनके शासन के साधु श्रावक में कितनी प्रेम वृत्ति, कितनी धर्म, भावना, कैसा पापभिरुत्व, श्रात्मवेषक वृत्ति और कैसा शासन प्रेम था ! इसकी सबूत जिनागम और पूर्वाचायों के ग्रन्थादि पढ़ने से स्पष्ट होता है । एक ही समय में पार्श्व प्रभु के शासनवर्ती मुनि और महावीर प्रभु के शासनवर्ती मुनि थे; किन्तु परस्पर की विनीतता, सत्यान्वेषक दृष्टि और निरहंत्व जानकर हमें बड़ा आल्हाद होता है ( देखिये उत्तराध्यन सूत्र अध्य० २३ ) उन्हीं पार्श्व प्रभु, महावीर प्रभु एवं अन्य तीर्थकरों के समय में नाना क्रियाकांड में रक्त परिव्राजक, सन्यासी, त्रिदंडी, तापस आदि भी थे; किन्तु जिनेश्वर के सच्चे साधु श्रावकों की उनपर कैसी माध्यस्थ दृष्टि, अनुकम्पा बुद्धि और आत्म धर्म के सन्मुख प्राणीमात्र को लेजाने की कैसी परोपकार वृत्ति थी ! ( देखिये भगवतीजी के कयी शतक व उद्देश्य उनके वर्णन से भरे हैं: ) Shree Sudharmaswami Gyanbhandar-Umara, Surat www.umaragyanbhandar.com

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