Book Title: Rajasthani Sahitya Sangraha 01 Author(s): Narottamdas Swami Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur View full book textPage 4
________________ प्रधान सम्पादकीय - संस्कृत साहित्य में गद्यलेखन की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। दण्डी का दशकुमार चरित, सुबन्धु की वासवदत्ता, कादम्बरी एवं हर्ष चरित्र प्राचीन गद्य के निदर्शनरूप में उपस्थापित किये जाते हैं। हिन्दी भाषा में गद्य काव्य की परम्परा सोलहवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध से मिलती है। हालांकि राजस्थानी एवं गुजराती गद्य काव्य इससे पूर्व के भी मिलते हैं। प्रस्तत प्रकाशन में प्राचीन राजस्थानी की तीन गद्य रचनायें क्रमशः-(1) खीची गंगेव नींबावत रो दोपहरो; (2) रामदास वैरावत री आखड़ी री बात; (3) राजान-राउतरो बात-बणाव, पुनर्मुद्रण रूप में पुनः प्रस्तुत की जा रही है। आशा है राजस्थानी साहित्य एवं संस्कृति में रुचि रखने वाले अध्येताओं हेतु यह उपादेय सिद्ध होंगी। आनन्द कुमार आर.ए.एस. निदेशक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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