Book Title: Raghuvarjasa Prakasa
Author(s): Sitaram Lalas
Publisher: Rajasthan Prachyavidya Pratishthan Jodhpur

View full book text
Previous | Next

Page 11
________________ [ ४ ] १५६२ में हुआ था । दुर्भाग्य से बाल्यावस्था में ही पितृ-प्रेमसे वंचित हो गये' । अत: बगड़ी गाँव के ठाकुर श्री प्रतापसिंहजी सूंडाने इनका पालन-पोषण किया और वयस्क होने पर अपने यहां कार्य पर रख लिया । दुरसाजी अपनी काव्य प्रतिभा के कारण शीघ्र ही विख्यात हो गये और दिल्ली के सम्राट अकबर के दरबार में भी अच्छा सम्मान प्राप्त किया । दुरसाजी राजस्थानके बहुत लोकप्रिय और यशस्वी कवि हुए हैं । ग्रापने कविताके नामसे बहुत सम्मान व धन प्राप्त किया । काव्य-रचना के दृष्टिकोणसे भी दुरसाजीका स्थान बहुत ऊँचा माना जाता है, इसमें कोई संदेह नहीं । इनके लिखे तीन ग्रंथ प्रसिद्ध हैं - १. बिरुद - छिहत्तरी, २. किरतारबावनी और ३. श्रीकुमार ग्रज्जाजीनी भृधर मोरीनी गजगत । इन ग्रंथोंके अतिरिक्त दुरसाजी के लिखे पचासों डिंगल गीत उपलब्ध होते हैं । दुरसाजी के दो स्त्रियां थीं जिनसे चार पुत्र हुए। ये अपने सबसे छोटे पुत्र किसनाजीके साथ पांचेटिया में ही रहते थे । वहीं सं० १७१२ में इनका देहावसान हुआ । इन्हीं दुरसाजीकी वंश-परम्परा में किसनाजीने मारवाड़ राज्यांतरगत पांचेटिया ग्राममें जन्म लिया जिसका वंश क्रम इस प्रकार है १ दुरसौ, २ किसोजी, Jain Education International ३ महेस, ४ खुमान, ५ साहिबखांन, ६ पनजी ७ दूल्हजी, ८किसनोजी, इस प्रकार कवि-परिचय के प्रारम्भ में दिए हुए छप्पयके अनुसार रघुवरजसप्रकासके रचयिता सुकवि किसनाजी आढ़ाका जन्म दुरसाजी आढ़ाकी आठवीं पुश्त में (पीढ़ी में ) दूल्हाजी नामक कविके घर हुआा। दूल्हजी के कुल छः पुत्र थे जिनमें किसनोजी तीसरे थे । इनके जीवनके सम्बंध में श्रीमोतो १ नोट- इनके पिताने सन्यास ले लिया था । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 ... 402