Book Title: Preksha Author(s): Unknown Publisher: Unknown View full book textPage 8
________________ ६ प्रेक्षाध्यान उपाधि से मुक्ति • किमत्यि उवाही पासगस ण विजइ ? णत्थि। आयारो ३।६७ क्या द्रष्टा के कोई उपाधि होती है या नहीं ? नही होती। आत्म-रमण • जे अणण्णदसी से अणण्णारामे, जे अणण्णारामे से अणण्णदंसी। आयारो २११७३ जो अनन्य को देखता है वह अनन्य मे रमण करता है और जो अनन्य में रमण करता है वह अनन्य को देखता है। पाप से मुक्ति • आयकदंसी ण करेति पाव। आयारो ३१३३ हिसा मे आतंक देखनेवाला पुरुष परम को जानकर पाप नही करता। • समत्तदसी ण करेति पाव। आयारो ३१२८ समत्वदर्शी पुरुष पाप नही करता। कर्म-बंध का विलय • एवं से अप्पमाएणं, विवेग किट्टति वेयवी। आयारो ५१७४ प्रमाद से किए हुए कर्म-बध का विलय अप्रनाद से होता है।Page Navigation
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