Book Title: Preksha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 27
________________ आगम और आगमेतर स्रोत २५ प्रशात चित्त है, अपनी आला का दमन करता है, समाधियुक्त है, उपधान करने वाला है, अत्यल्पभाषी है, उपशान्त है, जितेन्द्रिय है जो इन सभी प्रवृत्तियो से युक्त है, वह पद्म लेश्या मे परिणत होता शुक्ल लेश्या से युक्त व्यक्ति का स्वभाव • अट्टरुहाणि वञ्जिता धम्मसुक्काणि झायए। पसतचित्ते दतप्पा समिए गुत्ते य गुत्तिहि।। उत्तरायणाणि ३४।३१ • सरागे वीयरागे वा उवसते जिइदिए। एयजोगसमाउत्तो सुक्कलेस तु परिणमे।। उत्तरायणाणि ३४।३२ जो मनुष्य आर्त और रौद्र इन दोनो ध्यानो को छोडकर धर्म्य और शुक्ल-इन दो ध्यानो मे लीन रहता है, प्रशात चित्त है, अपनी आत्मा का दमन करता है, समितियो से समित है, गुप्तियो से गुप्त है, उपशात है, जितेन्द्रिय है—जो इन सभी प्रवृत्तियो से युक्त है, वह सराग हो या वीतराग, शुक्ल लेश्या मे परिणत होता है। प्रक्रिया • जल्लेसाइ दव्वाइ आदि अत्ति तल्लेसे परिणामे भवइ । जिस लेश्या के द्रव्य ग्रहण किये जाते है, उसी लेश्या का परिणाम हो जाता है। परिणाम अशुभ लेश्या का परिणाम • किण्हा नीला काऊ तिन्नि वि एयाओ अहम्मलेसाओ। एयाहि तिहि वि जीवो दुग्गइ उववजई वहुसो। उत्तरायणाणि ३४१५६ कृष्ण, नील और कापोत-ये तीनो अधर्म-लेश्याए है। इन तीनो से जीव प्राय दुर्गति को प्राप्त होता है।

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