Book Title: Preksha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 37
________________ आगम और आगमेतर स्रोत ३५ चित्त और मन क्रियमाण क्रियामय हो जाए, इन्द्रिया उस क्रिया के प्रति समर्पित हो, हृदय उसकी भावना से भावित हो, मन उसके अतिरिक्त किसी अन्य विषय मे न जाए, इस स्थिति मे क्रिया भावक्रिया वनती है । परिणाम कर्म-मुक्ति • णातीतमट्ठ ण य आगमिस्स, अहं नियच्छति तहागया उ । विधूत - कप्पे एयाणुपस्सी, णिज्झोसइत्ता खवगे महेसी । आयारो ३ | ६० तथागत अतीत और भविष्य के अर्थ को नही देखते । कल्पना को छोडनेवाला महर्षि वर्तमान का अनुपश्यी हो, कर्मशरीर का शोपण कर उसे क्षीण कर डालता है।

Loading...

Page Navigation
1 ... 35 36 37 38 39 40 41