Book Title: Preksha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 29
________________ अनुप्रेक्षा और भावना प्रयोजन आत्म-संस्थिति के लिए • सोहमित्यात्तसंस्कारस्तस्मिन् भावनया पुन | तत्रैव दृढसस्काराल्लभत्ते ह्यात्मनि स्थितिम् ।। समाधितंत्र श्लोक २८ आत्मा की भावना करनेवाला आत्मा में स्थित हो जाता है । 'सोऽह' के जप का यही मर्म है। "समस्या समाधान, सर्वदुःख-मुक्ति के लिए • भावणाजोगसुद्धप्पा, जले णावा व आहिया । णावा व तीरसपन्ना, सव्वदुक्खा तिउट्टति । । सूपगडो १५।५ जिसकी आत्मा भावना योग से शुद्ध है, वह जल मे नौका की तरह कहा गया है। वह तट पर पहुची हुई नौका की भाति सव दुखो से मुक्त हो जाता है। शान्ति के लिए • स्फुरति चेतसि भावनया विना, न विदुषामपि शान्तसुधारस । न च सुख कृशमप्यमुना विना, जगति मोहविपादविपाऽऽकुले । । शान्तसुधारस १।२ भावना के विना विद्वानो के चित्त मे भी शान्ति का अमृत रस स्फुरित विकसित नही होता। मोह और विपाद के विष से व्याकुल इस जगत्

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