Book Title: Preksha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

View full book text
Previous | Next

Page 33
________________ आगम और आगमेतर स्रोत ३१ . • माया पिया ण्हुसा भाया भजा पुत्ता य ओरसा। नाल ते मम ताणाय लुप्पतस्स सकम्मुणा।। उत्तरायणाणि ६।३ जब मै अपने द्वारा किये गये कर्मों से छित्र-भिन्न होता हूं, तब माता, पिता, पुत्र-वधू, भाई, पली और पुत्र-ये सभी मेरी रक्षा करने मे समर्थ नहीं होते। संसार अनुप्रेक्षा • मोहेण गब्म मरणाति एति। आयारो ५७ प्राणी मोह के कारण जन्म-मरण को प्राप्त होता है। • सव्वभवेसु अस्साया वेयणा वेइया मए। निमेसतरमित्त पि ज साया नत्थि वेयणा।। उत्तरल्झयणाणि १६७४ मैने सभी जन्मो मे दुःखमय वेदना का अनुभव किया है। वहा एक निमेष का अन्तर पडे उतनी भी सुखमय वेदना नहीं है। एकत्व अनुप्रेक्षा • अइअच्च सव्वतो सग ण मह अस्थित्ति इति एगोहमसि । आयारो ६१३८ पुरुष सव प्रकार के सग का त्याग कर यह भावना करे--मेरा कोई नहीं है, इसलिए मै अकेला हू। एगो अहमसि, न मे अस्थि कोइ, न याहमवि कस्सइ, एव से एगागिणमेव अप्पाण समभिजाणिज्जा। आयारो ८१६७ में अकेला हू, मेरा कोई नहीं है, मै भी किसी का नहीं है। इस प्रकार वह भिक्षु अपनी आत्मा को एकाकी ही अनुभव करे। अन्यत्व अनुप्रेक्षा • अण्णे खलु कामभोगा अण्णो अहमसि। सूयगडो २।२।३४ काम-भोग मुझसे भिन्न है और मै उनसे भिन्न हू। पदार्थ मुझसे भिन्न है और मै उनसे भिन्न हूं।

Loading...

Page Navigation
1 ... 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41