Book Title: Preksha Author(s): Unknown Publisher: Unknown View full book textPage 7
________________ आगम और आगमेतर स्रोत • ५ भावना • भावणाजोगसुद्धप्पा, जले णावा व आहिया। णावा व तीरसम्पन्ना, सव्वदुक्खा तिउद्दति।। सूयगडो ११५१५ जिसकी आत्मा भावना योग से शुद्ध है वह जल मे नौका की तरह कहा गया है, वह तट पर पहुची हुई नौका की भाति सव दु खो से मुक्त हो जाता है। आसन • अवि झाति से महावीरे, आसणत्थे अकुक्कुए झाण। आयारो ६४।१४ भगवान् उकडू आदि आसनो मे स्थित और स्थिर होकर ध्यान करते थे। प्रक्रिया मन, वाणी और शरीर के कर्म को शांत कर देखना • विणएत्तु सोय णिक्खम्म, एस महं अकम्मा जाणति पासति । आयारो ५११२० इन्द्रिय-विषय का परित्याग कर निष्क्रमण करनेवाला वह महान् साधक अकर्मा होकर जानता, देखता है। परिणाम दुःखचक्र से मुक्ति • जे कोहदसी से दुखदसी। आयारो ३१५३ जो क्रोधदर्शी है वह दुखदर्शी है। • से मेहावी अभिनिवडेजा कोह च दुक्ख च। आयारो ३१८४ मेधावी क्रोध, मान, माया, लोभ, प्रेय, द्वेष दुख को छिन्न करे।Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41