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१८ प्रेक्षाध्यान
परिणाम
कर्म का विलय
• एव से अप्पमाएण, विवेग किट्टति वेयवी । प्रमाद से किए हुए कर्म-बन्ध का विलय अप्रमाद से होता है ।
आयारो ५।७४
लोक का ज्ञान
• आयतचक्खू लोग-विपस्सी लोगस्स अहो भाग जाणइ, उड्ढ भाग जाणइ, तिरिय भाग जाणइ । आयारो २ । १२५ सयतचक्षु पुरुष लोकदर्शी (शरीरदर्शी) होता है। वह लोक के अधोभाग को जानता है, ऊर्ध्व भाग को जानता है और तिरछे भाग को जानता है ।
अतीत- अनागत का ज्ञान
• स्वशरीरमनोवस्था, पश्यत स्वेन चक्षुषा । यर्थेवाय भवस्तद्वद्, अतीतानागतावपि । ।
ध्यान द्वात्रिशिका - २ जिस व्यक्ति ने शरीर और मन मे घटित होनेवाली अवस्थाओं को देखने का अभ्यास किया है, वह अपने वर्तमान भव की तरह अतीत और अनागत को भी देखने लग जाता है ।