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शरीर-प्रेक्षा
प्रयोजन सतत अप्रमाद हेतु
जे इमस्स विग्गहस्स अय खणे त्ति मन्नेसी। आयारो ५१२१ 'इस शरीर का यह वर्तमान क्षण है', इस प्रकार अन्वेषण करनेवाला अप्रमत्त होता है।
स्वरूप साधना का सशक्त माध्यम-शरीर • सरीरमाहु नाव त्ति, जीवो वुच्चइ -नाविओ।
ससारो अण्णवो वुत्तो, ज तरति महेसिणो।। उत्तरज्झयणाणि २३ ।७३ शरीर नौका है, जीव नाविक है और ससार समुद्र है, महान् मोक्ष की एषणा करनेवाले इसे तैर जाते है। आत्म-दर्शन की प्रक्रिया • आदा तणुप्पमाणो णाण खलु होइ तप्पमाण तु।
त सवेयणरूव तेण हु अणुहवइ तत्थेव ।। • पस्सदि तेण सरूव जाणइ तेणेव अप्पसब्माव । अणुहवइ तेण रूव अप्पा णाणप्पमाणादो।।
___ वृहद्नयचक्र ३८५, ३१६ जितना शरीर का आयतन है, उतना ही आत्मा का आयतन है। जितना आला का आयतन है, उतना ही चेतना का आयतन है।