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१४ प्रेक्षाध्यान
आन-प्राण को सूक्ष्म कर धर्म्य-शुक्ल ध्यान करे। कायचे? निरुभित्ता मण वाय च सव्वसो । वट्टइ काइए झाणे, सुहमुस्सासव मुणी।।
व्यवहार भाष्य पीठिका, गाथा १२३ ध्यान तीन प्रकार के होते है-कायिक, वाचिक और मानसिक । शरीर की प्रवृत्तियो का निरोध करना कायिक ध्यान है। इस ध्यान मे श्वास-प्रश्वास का निरोध नहीं किया जाता किन्तु उसे सूक्ष्म कर लिया जाता है।
प्रक्रिया श्वास को मन्द मन्द लेना एवं छोड़ना • पलियक बधेउ, निरुद्धमणवयकायवावारो। नासग्गनिमियनयणो, मदीकयसासनीसासो।
पासनाहचरियं पृ० ३०४ ध्यान मुद्रा में पर्यक-आसन, मन, वचन, और शरीर के व्यापार का निरोध, नासाग्र पर दृष्टि और मन्द श्वास-प्रश्वास होता है। मन्द मन्द क्षिपेद् वायु, मन्द मन्द विनिक्षिपेत् । न क्वचिद् वार्यते वायुर्न च शीघ्र प्रमुच्यते।।
यशस्तिलक चम्पू कल्प ३६, श्लोक ७१६ वायु को मन्द-मन्द लेना चाहिए और मन्द-मन्द छोडना चाहिए। हठात् न उसको रोकना चाहिए और न ही उसे छोडना चाहिए। कालमान • पायसमाउसासा कालपमाणेण होति नायव्वा ।
व्यवहार भाष्य पीठिका गाथा १२२ यावत् कालेनैकश्लोकस्य पादश्चित्यते तावत् कालप्रमाण कायोत्सर्गे उच्छ्वास् इति।
मलयगिरि वृत्ति प्त्र ४११४२ श्वास-प्रश्वास का कालमान (लम्बाई) श्लोक के एक चरण के समान