Book Title: Preksha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 15
________________ श्वास-प्रेक्षा प्रयोजन श्वास-विजय • णिज्जियसासो णिप्फदलोयणो मुक्कसयलवावारो। जो एहावत्थगओ सो जोई णत्थि सदेहो।। वृहद्नय चक्र, श्लोक ३८५ श्वास-विजय, अनिमेष दृष्टि, मन, वचन और काया के व्यापार से मुक्त व्यक्ति योगी होता है। इसमे कोई सन्देह नही। स्वरूप सूक्ष्म श्वास-प्रश्वास • अणिहे सहिए सुसवुडे, धम्मट्टी उवहाणवीरिए। विहरेज समाहितिदिए आतहित दुक्खेण लब्मते।। सूयगडो ११२१५२, देखे टिप्पण मुनि स्नेह रहित, श्वास को शात और नियन्त्रित करनेवाला, सुसंवृत, धर्मार्थी, तप मे पराक्रमी, शात इन्द्रियवाला होकर विहार करे। आत्महित की साधना वहुत दुर्लभ है। (सहिए' का अर्थ श्वास को शात करना रहा है)। सहिए धम्ममादाय, सेय समणुपस्सति । आयारो ३।६७ श्वास को नियत्रित और शात करनेवाला साधक धर्म को स्वीकार कर श्रेय का साक्षात्कार कर लेता है। • ताव सुहुमाणुपाणू, धम्म सुक्क च झाइजा। कायोत्सर्ग शतक १५१४

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