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आगम और आगमेतर स्रोत २१
करण और संस्थान • खेत्तदो ताव अणेगसठाणसठिदा। षट्खण्डागम् पुस्तक १३, पृ० २६६
करणरूप में परिणत शरीर-प्रदेश अनेक सस्थान वाले होते है। जैसे श्रीवत्स, कलश, शख, स्वस्तिक, नन्द्यावर्त आदि ।
परिणाम चैतन्य मे लीनता ऐहिक ममत्व से मुक्ति • सधि समुप्पेहमाणस्स एगायतण-रयस्स इह विष्पमुक्कस्स णत्यि, मग्गे विरयस्स त्ति बेमि।
___ आयारो, ५१३० जो कर्म-विवर को देखता है, एक आयतन मे लीन है, ऐहिक ममत्व से मुक्त है, हिसा से विरत है, उसके लिए कोई मार्ग नहीं है, ऐसा मै कहता