Book Title: Preksha
Author(s): Unknown
Publisher: Unknown

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Page 13
________________ आगम और आगमेतर स्रोत ११ मे पचास, पाक्षिक मे तीन सौ, चातुर्मासिक मे पाच सौ और वार्पिक मे एक हजार आठ है। श्वास का कालमान • पायसमा ऊसासा कालपमाणेण हुति नायव्वा । एव कालपमाण उस्सग्गेण तु नायव्व।। आव० नियुक्ति १५५३ एक उच्छ्वास का कालमान है-एक चरण का स्मरण। इस प्रकार कायोत्सर्ग से काल-प्रमाण ज्ञातव्य है। शरीर की प्रवृत्ति का विसर्जन • वोसट्टचत्तदेहो काउस्सग्ग करिजाहि। आव० नियुक्ति १५५६ __ शरीर की प्रवृत्ति का विसर्जन और परिक्रम का त्याग कर कायोत्सर्ग करे। पुन. पुनः अभ्यास • असइ वोसट्ट चत्तदेहे। दसवेआलियं १०।१३ जो मुनि वार-वार देह की प्रवृत्ति का विसर्जन और त्याग करता है-वह भिक्षु है। • अभिक्खण काउसग्गकारी। दसवेआलियं चूलिया २७ मुनि वार-वार कायोत्सर्ग करनेवाला हो। परिणाम धर्म का बोध • नरा मुयच्चा धम्मविदु त्ति अजू। आयारो ४।२८ देह के प्रति अनासक्त मनुष्य ही धर्म को जान पाते है और धर्म को जाननेवाले ही ऋजु होते है।

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