Book Title: Pratyakhyan Swarupam Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam Publisher: Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam View full book textPage 4
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ।। ॐ नमो जिनाय ॥ धिद्वा श्रीयशोदे वीये प्रत्या ख्यान स्वरूप श्रीमद्यशोदेवसूरिसूत्रितं प्रत्याख्यानस्वरूपम् । ॥१॥ तवझाणानलनिवदुहकम्भिधणं जिणं नमिडं । पच्चक्खाणसरूवं भणामि सुत्ताणुसारेण ॥ १ ॥ पइदिवओगाओ लेसेणाहारगोयरं पायं । अद्धापच्चक्खाणं वोच्छं नवकारमाईयं ॥२॥ पच्चक्खाणं नियमो अभिलाहो | विरमणं वयं विरई । आसवदारनिरोहो निवित्ति एगट्टिया सदा ॥३॥ पडिकूलमविरईए विरईभावस्स आभिमु खणं । खाणं कहण सम्म पच्चक्खाणं विणिद्दिढें ॥४॥ अद्धा कालो भण्णइ तप्परिमाणादभेदबुद्धीए । कीर मेवमद्धापच्चक्खाणं मुणेयव्वं ॥ ५॥ अद्धापच्चक्खाणपुरस्सरमेगासणाइ पाएणं । पडिवन्जिज्जइ तेणं अद्वाखा | तयंपि मयं ॥ ६॥ गहणे विहिं १ विसुद्धिं २ सुत्तवियारं च ३ पारणंविहिं च ४ । सयपालणं फलं चिय ६ऐयस्ता भणामि ऽहाकमसो ॥ ७॥ नवकाराई सुत्तं सव्वं पयवंजणेहि जाणतो । अत्थं च तस्स सम्मं आहारागारमाईयं ॥८॥ सूरे अणुट्टिएच्चिय गुरुणो चरणुज्जयस्स गीयस्स । काऊण सुत्तविहिणा विणयं किइकम्ममाईयं ॥९॥ रागिण्हइ पच्चक्खाणं उवउत्तो सावगो व साह वा । अणुभासंतो वयणं गुरुणो लहुतरसरेणं च ॥ १० ॥गुरुविरहे स For Private and Personal Use OnlyPage Navigation
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