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(११) कर्मक्षय : गजसुकुमाल खंधक (१०) दुःखक्षय : ईर्ष्या दीनता का क्षय निश्चिन्तता
शालिभद्रवत् सहर्ष सहन ।
सेवा
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प्रभुचरण की सेवा मिले । मोक्ष न हो तब तक हर भव में
सहर्ष सहन
चारित्र
कर्मक्षय
कामशोक का क्षय जाप शुभेच्छा । आधि-चिन्ताक्षय शास्त्रचिंतन (१०) दुःखक्षच : ईर्ष्या दीनता का क्षय निश्चिन्तता । (८) गुरुवचनसेवनाजिनभक्ति (७) शुभगुरुयोग : त्यागी चारित्री प्रभुशरण । क्रोधादि दुःखक्षय समता सौम्यता मैत्री ।
तप-दान-दया - व्रतादि ।
साधु-समागम
ज्ञान
दर्शन
अभिमान
चतुर्विध संघ
प्रवचन
जिनमंदिर
क्रौध
स्वरुप जिनशासन का जय हो । गणधर, चतुर्विध संघ, प्रवचन, रत्नत्रय
दुःखक्षय
काम शो
- जैनं जयति शासनम्
चारित्र
जिनवचन
श्रद्धा
ज्ञान
बोधिलाभ
दाना
चारित्र सामायिक
समाधि मरण
शुभगुरु योग गुरुवचनसेवा जय बीयराय
प्राप्ति जिनवचन स्वीकार दर्शन - ज्ञान चारित्र । समाधि । (१२) समाधि-मरण : अन्त में परमेष्ठि ध्यानयुक्त (१३) बोधिलाभ : परभव के लिए जैन धर्म