Book Title: Pratibodh
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 14
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यही हाल सूत और उपसूत का हुआ । ये दोनों घनिष्ट मित्र तपस्या के द्वारा शक्तिशाली बनकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों को अपने चरणों में झुकाना चाहते थे । दोनों मिलकर २२ (बाईस) योद्धाओं के बराबर सशक्त हो जाते थे । यह बात विष्णु को ज्ञात हो गई। उन्होंने मोहिनी रुप में प्रकट होकर नृत्य क द्वारा हाव-भाव प्रदर्शित किये । तपस्या और साधना भूलकर दोनों तपस्वी उस मोहिनी पर मुग्ध हो गये । मोहिनी ने कहा कि तुम दोनों में से जो अधिक बलवान् होगा, में उसी का वरण करूँगी । अधिक बल किसका है ? इसका निर्णय युद्ध के द्वारा ही हो सकता था । फलस्वरुप दोनों आपस में युद्ध करने लगे । अन्त में एक की मृत्यु हो गई । शक्ति बाईस से घटकर दो के बराबर रह गई । इससे ब्रह्मा विष्णु-महेश पराजय से बच गये । ऐसा है भयंकर काम ! अर्थ और काम ये दोनों पुरुषार्थ धर्म और मोक्ष के बीच में रक्खे गये हैं- यह बात विशेष ध्यान देने योग्य है । अर्थ और काम पर धर्म से अंकश रक्खा जा सकता है । ईमानदारी और मेहनत से धन कमाया जाय तथा उसका उपयोग परोपकार में किया जाय ता अर्थ अपने वश में रहेगा । इसी प्रकार कामनाओं को ऊर्ध्वगामी बनाया जाय अर्थात् कामिनी से माता पर, माता से गुरु पर और गुरु से प्रभु पर उन्हें ले जाया जाय तो वे पवित्र होंगी और इस तरह "काम" पर धर्म का अंकश रहेगा । ___ धर्म से यह लोक भी सुधरता है और परलोक भी । धर्म से विचार और विवेक पेदा होता है । अर्थ और काम के सर्वोच्च आसन पर बिराजमान चक्रवर्ती महाराज भरत को धर्म ने ही विरक्त बनाया था- सर्वज्ञ सर्वदर्शी बनाया था - मोक्ष दिलाया था; इसी लिए चार पुरुषार्थो में धर्म का स्थान सर्वप्रथम रक्खा गया है । ___ यदि आप भोजन भी प्रभु की आज्ञानुसार करेंगे तो वह आपका भोजन भी काम पुरुषार्थ कहलाएगा अन्यथा, काम कहलाएगा । For Private And Personal Use Only

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