Book Title: Pratibodh
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 119
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुविचार • अग्नि से स्वर्ण शुद्धि के तपस्या से आत्मशुद्धि होती है। • दूध ठंडा हो तभी खटाई से दही बनता है; उसी प्रकार दिमाग शान्त हो तभी चिन्तन से समस्याओं का समाधान मिलता है । प्रेम वह “मास्टर” है, जिससे किसी भी आत्मा का ताला खुल सकता इच्छा का अभाव ही संयम है, जो उच्च धार्मिक जीवन की प्रारम्भिक आवश्यकता है। जिस हृदय में क्षमा होती है, उसी में परमात्मा निवास करते हैं । • चेहरे के रूप को दर्पण बताता है तो आत्मा क रूप को आगम । * माता-पिता तीर्थ के समान हैं; इसलिए जो माता-पिता के प्रति वफादार हे, वही प्रभु के प्रति वफादार हो सकता है । विकास क साथ ज्ञान का प्रकाश आने पर पूर्णता का वह पथ दिखेगा, जिसरी परमात्म पद प्राप्त हो सके । स्वय को स्वयं ढूँढने पर विकास होगा । प्रभु की वाणी पर श्रद्धा हो, प्रतीति हो, चि हो तभी स्पर्श (आचरण) होगा । सन हुए सुविचारों को मेंहदी की तरह गोटत रहने (मनन करत रहने) पर बेराग्य का रंग गहरायेगा और दुःख लुम होता जायगा । जीवन का अर्थ (प्रयाजन या ध्यय) समझ में आ जाय ता मूर्छा चला जाय। लोग कहते हैं- “महाराज ! माला फिराते समय मन भटका है" किन्तु कोई एसा नहीं कहता कि-"नोटों पर हाथ फिरात समय (नोट गिनत समय) मन भटकता है ।" चिन्तन की गहराई में उतरने से वीतरागता सहज प्राप्त हो सकती है। भौतिक विज्ञान विश्वविनाशक है, किन्तु आध्यात्मिक विज्ञान विश्वविकासक * जीवन का प्रत्येक पल मृत्यु की दिशा में ले जा रहा है । • बाहर से इतना सारा दिल-दिमाग में भर दिया गया है कि वहाँ और For Private And Personal Use Only

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