Book Title: Pratibodh
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 56
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir यवक :- “अच्छी बात है । इतना अभीष्ट उत्तम मत्रा पाने की खुशी में' आज में आपको दिल्ली की दक्षिणा देता हूँ।" गर :- “दिल्ली क्या तेरे बाप की है ?" यवक :- “तो क्या स्वर्ग और वेकण्ठ आपके बापक हैं ?" गर निरुत्तर हो गया । सभी सुनने वाले ठहाका मार कर हँस पड़े । सेठ ने बिना धर्मान्तरण किये ही कन्या विवाह दी । ऐसे लोभी गुरु से भला कोन बचना नहीं चाहगा ? For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122