Book Title: Pratibodh
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 75
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir "कशतः स्वरभङ्गस्यात् मेधा हन्ति पिपीलिका ।।" (भोजन में कश चला जाय तो स्वरभंग हो जाता है- गला बसरा हो जाता है और चींटी चली जाय तो वह बुद्धि का नाश कर देती है) मवरखी से उल्टी हो जाती है, मकड़ी खाने में आ जाने से कोढ़ हो जाता है तथा अन्य अनेक जन्तुओं से खाज-खुजली, फोड़े-फुसी हो जाते हैं । रोगों का प्रभाव मन पर भी होता है । इस प्रकार अशुद्ध आहार से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य का नाश हो जाता है । __ पूणिया श्रावक का मन एक दिन सामायिक में नहीं रमा तो उसने पत्नीसे पूछा कि आज आहार में कोई चीज बाहर से आई थी क्या ? 'बहुत सोचने के बाद पत्नी को याद आई । बाली :- "हाँ चूल्हे में आग जलाने के लिए एक जलता हुआ कडा पडौसन से लाई थी !' बिना श्रम क प्राप्त कंडे जैसी साधारण वस्तु का सूक्ष्म प्रभाव मन पर केसे होता है ? इसका यह उत्कृष्ट उदाहरण है । बत्तीस दाँतों और दो होठों की सरक्षा में रहने वाली जीभ स एक कवि ने क्या अच्छा कहा है : "रे जिवे ! कुरु पर्यादाम् भोजने वचने तथा । वचने प्राण - सन्देहो भोजने चाप्यजीर्णता ।।" (हे जीभ ! तू भोजन और वचन में मर्यादा का ध्यान रख; अन्यथा भोजन से अजीर्ण हो जायगा और बचन से प्राण संकट में पड़ जायग) जीभ क दो काम हैं- खाना और बोलना। दोनों में संयम जरूरी है। उसे संयम सिखाने क लिए उपवास का विधान है, जिसे 'अनशन' नामक बाह्य तप कहते हैं । उपवास का एक अर्थ है - (उप = समीप, वास -- निवास) आत्मा के समीप रहना । भौतिक पदाथो के समीप बहत रह लिय। की कभी आत्मा के सान्निध्य में भी रह कर देखिये कि उसमें कसा आनन्द आता है। आत्मा की संगति में रहने की प्रेरणा सत्संग से मिलती है । डिब्बे में कोई सोता रहे या जागता रहे, ट्रेन चलती ही रहती है, उसी प्रकार दुनियाँ भी चलती ही रहती सम् उपसर्ग पूर्वक सृ (सरका) धात से संसार बना है । वह किसी की प्रतीक्षा नहीं करता ... किसी की पर्वाह नहीं करता -- निरन्तर गतिशील रहता है । कहावत है .. ७४ For Private And Personal Use Only

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