Book Title: Pratibodh
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

View full book text
Previous | Next

Page 110
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मदन रेखा महामुनि मणिचूड़ ने अपने ज्ञानचक्षु से जान लिया की विद्याधर मणिप्रभ जिस महिला को साथ लेकर यहाँ दर्शनार्थ आया है, वह महासती मदन रेखा है जिसने घोर जंगल में प्रसूति के बाद अपनी साड़ी के एक हिस्से को फाड़ कर उसकी झोली में नवजात शिशु को लिटा दिया था और झोली को एक पेड़ की शाखा से बाँधकर स्वयं स्नान के लिए सरोवर तट पर पहुँची थी । स्नान के बाद साड़ी पहन कर ज्यों ही यह लौट रही थी कि सहसा एक मदोन्मत हाथी ने सूँड में उठा कर इसे अपनी पूरी शक्ति से आकाश में उछाल दिया था । उसी समय इस विद्याधर ने अपने विमान में झेलकर इसके प्राण बचाये; किन्तु इसके अनुपम सौन्दर्य पर यह इस समय आसक्त है और यहाँ से जाने के बाद अपने राजमहल में ले जाकर इसे रानी बनाने की सोच रहा है । फिर क्या था ? महामुनि ने वैराग्यवर्धक उपदेश की ऐसी धारा बहाई कि विद्याधर मणिप्रभ की कामवासना शान्त हो गई । मणिप्रभ मदनरेखा को बहिन की नजर से देखने लगा । इतना ही नहीं, मुनिराज से उसने परस्त्रीगमन की प्रत्याख्यान ले लिया प्रवचन समाप्त होने के बाद चार ज्ञान के धारक महामुनि मणिचूड़ से मदन रेखा ने अपने नवजात शिशु का वृतान्त पूछा । मुनिराज ने कहा :- “मिथिला नरेश महाराज पद्यरथ अपने घोड़े पर सवार होकर उधर से निकले । नवजात शिशु को झोली में लिटाकर जानेवाली माँ कही आसपास ही होगी । ऐसा सोचकर उन्होंने खूब तलाश की। किन्तु जब माँ का पता नहीं लगा तो उसे उठाकर वे अपने राजमहल में ले गये । महाराज निःसन्तान थे । उन्होंने घोषित कर दिया कि रानी को गुप्तगर्भ था, जिसने पिछली रात जन्म लिया है। सारी मिथिला में पुत्रजन्मोत्सव इस समय मनाया जा रहा है । नमिराज उसका नाम रक्खा गया है और वह बड़े प्रेम से राजमहल में पल रहा है । वह बहुत ही पुण्यशाली जीव है ।" - चरम - शरीरी है । I यह सुनकर मदनरेखा बहुत सन्तुष्ट हुई। उसी समय एक महातेजस्वी देव वहाँ आया । उसने पहले मदनरेखा को प्रणाम किया और फिर महामुनि को । दर्शकों के मन में सहसा यह शंका हुई कि आगन्तुक देव ने पहले एक श्राविका को वन्दन क्यों किया ? बिना पूछे ही महामुनि ने इस शंका को जानकर कहा : “भव्यात्माओ ! For Private And Personal Use Only १०९

Loading...

Page Navigation
1 ... 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122