Book Title: Pratibodh
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 109
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आखिर सब और से निराश होकर उन्होंने अब यह मान लिया कि शायद जंगल के हिंसक पशु उसे खा गये होंगे । अपनी प्रियतमा की दुर्दशा और मृत्यु के लिए वे स्वयं को दोषी मानकर उसका प्रायश्चित करना चाहते थे । इसके लिए वे अग्निचित्ता सुलगाकर उसमें कूद कर अपने प्राणों की आहुति देना ही चाहते हैं कि उसी समय प्रतिसूर्य वहाँ आकर उनका हाथ पकड़ लेते हैं और सारे कुशल-समाचार उन्हें सुनाते हैं । फिर अपने साथ विमान में बैठाकर पवनंजय को अंजना और हनुमान से मिलाते हैं । कुछ दिनों बाद तीनों को विमान में ही बिठा कर उनकी राजधानी में छोड़ आते हैं । सर्वत्र हर्षोल्लास छा जाता है । इस कथा से यह शिक्षा लेनी चाहिये कि संकटों में हम व्याकुल न हों । संकट के कारण अपने पूर्वजन्म के कर्मो को सोचे । १०८ For Private And Personal Use Only

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