Book Title: Pratibodh
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 87
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir आप पैदा हो जाती है, वैसे ही मोक्ष के लिए प्रयत्न करनेवालों को सम्मान या स्वर्ग अपने आप मिल जाता है; परन्तु पास-फस की तरह ही सम्मान और स्वर्ग उन्हें फीक लगते हैं । अंधेरी रात में बाहर जानेवाले हाथ में टोर्च लेकर निकलते हैं अथवा टोर्च वाल के साथ जाते हैं और यदि यह भी संभव न हो तो जानकारी से रास्ते की जानकारी लेकर चलते हैं । ठीक उसी प्रकार कुशल व्यक्ति इस संसार में संयमी बनकर या संयमियां के साथ भ्रमण करते हैं अथवा उनसे जानकारी प्राप्त करके गृमत हैं । संयमियों का-साधुओं का या ज्ञानियों का सान्निध्य संभव न हो तो धर्मशास्त्रों का स्वाध्याय करके कर्तव्याकर्तव्य का निर्णय करत है : “तस्माच्छास्त्रां प्रमाण ते कार्याकार्य व्यवस्थितौ ।।" (कार्य--अकार्य का निर्णय करने क लिए पझं शास्त्र को ही प्रमाण मानना चाहिये) __ मन की गुफा में सिंह की तरह कषाय छिपा रहता है, जो मौकबेमौके प्रकट होकर जीवन को आशान्त बनाता रहता है; इसीलिए ज्ञानियों ने मन को शुद्ध बनान पर जार दिया है । कहते हैं : "मन चंगा तो कढौती में गगा ।।" किसी कवि ने बाँसुरी से पूछा कि तुझे इतना प्रम श्रीकृष्ण क्या करते हैं तो उसने उत्तर दिया :- “मैं भीतर से पोली हूँ- स्वच्छ हूँ-सरल हूँ !" मन भी आत्मारूपी कृष्ण की बाँसुरी है । उसमें निर्मलता ही सरलता हो तो आत्मा के लिए वह प्रेमपात्र बन सकता है । विषय और कषाय ग्यारहवें गुणस्थानक तक पहुँची हुई आत्मा को भी परेशान करते हैं और असावधान होने पर उसे पहले गणस्थानक में पटक देते हैं । इसलिए निरन्तर जागरूक रहने की आवश्यकता है । कहन स करना अधिक अच्छा होता है । सदाचारी व्यक्ति क आदर्श जीवन स ही लोग प्रेरणा ग्रहण कर लेते हैं । प्रगति के लिए आचार की जरूरत , प्रचार की नहीं । प्रगति के उच्च शिखर पर कोई उछल कर नहीं पहुंच सकता । उसतम आदर्श को सामने रखकर धीरे-धीरे उस और बढ़ना पड़ता है : For Private And Personal Use Only

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