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आप पैदा हो जाती है, वैसे ही मोक्ष के लिए प्रयत्न करनेवालों को सम्मान या स्वर्ग अपने आप मिल जाता है; परन्तु पास-फस की तरह ही सम्मान और स्वर्ग उन्हें फीक लगते हैं ।
अंधेरी रात में बाहर जानेवाले हाथ में टोर्च लेकर निकलते हैं अथवा टोर्च वाल के साथ जाते हैं और यदि यह भी संभव न हो तो जानकारी से रास्ते की जानकारी लेकर चलते हैं । ठीक उसी प्रकार कुशल व्यक्ति इस संसार में संयमी बनकर या संयमियां के साथ भ्रमण करते हैं अथवा उनसे जानकारी प्राप्त करके गृमत हैं ।
संयमियों का-साधुओं का या ज्ञानियों का सान्निध्य संभव न हो तो धर्मशास्त्रों का स्वाध्याय करके कर्तव्याकर्तव्य का निर्णय करत है :
“तस्माच्छास्त्रां प्रमाण ते
कार्याकार्य व्यवस्थितौ ।।" (कार्य--अकार्य का निर्णय करने क लिए पझं शास्त्र को ही प्रमाण मानना चाहिये) __ मन की गुफा में सिंह की तरह कषाय छिपा रहता है, जो मौकबेमौके प्रकट होकर जीवन को आशान्त बनाता रहता है; इसीलिए ज्ञानियों ने मन को शुद्ध बनान पर जार दिया है । कहते हैं :
"मन चंगा तो कढौती में गगा ।।"
किसी कवि ने बाँसुरी से पूछा कि तुझे इतना प्रम श्रीकृष्ण क्या करते हैं तो उसने उत्तर दिया :- “मैं भीतर से पोली हूँ- स्वच्छ हूँ-सरल हूँ !"
मन भी आत्मारूपी कृष्ण की बाँसुरी है । उसमें निर्मलता ही सरलता हो तो आत्मा के लिए वह प्रेमपात्र बन सकता है ।
विषय और कषाय ग्यारहवें गुणस्थानक तक पहुँची हुई आत्मा को भी परेशान करते हैं और असावधान होने पर उसे पहले गणस्थानक में पटक देते हैं ।
इसलिए निरन्तर जागरूक रहने की आवश्यकता है । कहन स करना अधिक अच्छा होता है । सदाचारी व्यक्ति क आदर्श जीवन स ही लोग प्रेरणा ग्रहण कर लेते हैं । प्रगति के लिए आचार की जरूरत , प्रचार की नहीं ।
प्रगति के उच्च शिखर पर कोई उछल कर नहीं पहुंच सकता । उसतम आदर्श को सामने रखकर धीरे-धीरे उस और बढ़ना पड़ता है :
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