Book Title: Pratibodh
Author(s): Padmasagarsuri
Publisher: Arunoday Foundation

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Page 33
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञानियों को वन्दन करना पहला प्रकार है । इससे हमे भी ज्ञान प्राप्त करने की प्रेरणा मिलती है । ज्ञान धर्मग्रन्थों के रूप में हमारे पास सदा उपलब्ध रहता है । गुरुदेव तो विहार करक अन्यत्र चले जाते हैं; परन्तु ग्रन्थ कही नहीं जाते । वे ज्ञानप्राप्ति के साधन हैं। उन्हें संभालना उन पर जिल्द चढ़ाना, उन्हें सुरक्षित स्थान पर रखना. उन पर धल न बेठने दना- कीड़े न लगन देना हमारा कर्तव्य है । चातुर्मास में बरसात के कारण वातावरण में नमी (गीलापन) होने से पुस्तके भी प्रभावित होती हैं; इसलिए चातुर्मास के बाद (धूप तेज होती है, उसका उपयोग कर के) ज्ञानभंडार (ग्रन्थागार) का प्रतिलेखन किया जा सकता है । यह दसरा प्रकार है । पुस्तके प्रकाशित करना, उन्हें स्वयं पढ़ना और दूसरों को पढ़ने के लिए भेंट करना, जो ज्ञान हमने प्राप्त किया है, उसे चर्चा द्वारा, प्रवचन द्वारा अथवा पुस्तके लिखकर दूसरोंको परोसना ज्ञानपूजा का तीसरा प्रकार है । तीनों प्रकारों से ज्ञान की आराधना करना ज्ञानपञ्चमी मनाने का उद्देश्य है। संक्षेप में अक्षय तृतीया, दीपावली और ज्ञानपंचमी - इन तीन पत्रों का परिचय देने के बाद चौथे पर्व कार्तिक पूर्णिमा पर थोड़ी विस्तृत चर्चा करेंगे। कार्तिक पूर्णिमा को तीन कारणों से महत्त्व प्राप्त हुआ है । उस दिन श्रावक-श्राविकाओं का समूह महातीर्थ शगुंजय की यात्रा करता है । प्रात:काल चार बजे से ही सिद्धाचल की तलहटी पर प्रबल उत्साह और हर्षोल्लास से एका युवकों और युवतियों ही नहीं, बच्चों और बूढों तक की भीड़ में भक्ति भावना देखकर भला किसका हृदय गीला नहीं हो जाता सिद्धाचलजी की यात्रा क्या है ? मानो सिद्धशिला की ही यात्रा है वह ! जहाँ पहुँच कर अनन्त यात्रियों ने अपने भावों को पवित्र किया है - तपस्या से कर्मनिर्जरा कर के परमपद (मोक्ष-धाम) पाया है और जहाँ के मंगलमय पद्लों के स्पर्शमात्र से रोमांचित शरीर के अन्त:करण में धर्मध्यान की पावन सुरसरिता प्रवाहित होने का अनुभव सभी भव्यजनों को होता रहा है और आज भी होता है । दूसरा कारण है- साधु साध्वियों का विहार । वे मुक्त विहारी होते हैं। किसी स्थान विशेष पर उन की आसक्ति नहीं होती । कहावत है : - बहता पानी निर्मला बँधा सो गन्दा होय साधू तो रमता भला दाग न लागे कोय ।।" ३२ For Private And Personal Use Only

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