Book Title: Prashna Vyakaran Sutra Author(s): Amarmuni Publisher: Sanmati Gyanpith View full book textPage 6
________________ प्रकाशकीय श्वेताम्बर - स्थानकवासी जैन परम्परा में महामहिम स्व. आचार्यदेव श्री आत्माराम जी महाराज, आगम साहित्य के ख्यातिप्राप्त महान् अभ्यासी थे । आपने अनेक आगमों पर विवेचनाप्रधान विस्तृत टीकाएं लिखी हैं । आगमों पर राष्ट्रभाषा हिन्दी में टीकाएँ लिखने में ही उन्होंने अपने बौद्धिक जीवन का अधिकांश समय व्यतीत किया था । उनकी आगमसेवाएँ जैन इतिहास में चिरस्मणीय रहेंगीं । 4 आचार्य श्री के महान् शिष्य पं० श्री हेमचन्द्र जी महाराज भी जैन जगत् के एक विशिष्ट प्रतिभाशाली मनीषी हैं । संस्कृत, तथा आगमशास्त्र के आप भी गंभीर विद्वान् हैं । आपके द्वारा भी समाज की साहित्यिक सेवा कुछ कम नहीं हुई है । प्रश्नव्याकरण सूत्र का प्रस्तुत आदर्श संस्करण भी आप की ही विलक्षण बौद्धिक शक्ति का चमत्कार है । इतनी विस्तृत व्याख्या के साथ प्रश्नव्याकरण का यह श्रेष्ठ रूप, हमारी जानकारी में, पहली बार ही जनता के समक्ष आ रहा है । श्रद्धेय पं० श्री पद्मचन्द्रजी ( भण्डारी जी महाराज) के सत्प्रयत्न, उत्साह एवं प्रेरणा से उनके महनीय गुरुदेव की यह कृति प्रकाश में आ सकी है। वस्तुतः उक्त प्रकाशन के द्वारा एक सुयोग्य शिष्य ने अपने श्रद्धेय महान गुरु का अमुक अंश में गुरुऋण अदा किया है । भण्डारी महाराज ने यत्र तत्र जैन धर्म के गौरव का उल्लेखनीय प्रचार एवं प्रसार किया है । यह साहित्यसेवा भी उनकी उसी स्वर्णिम कर्मशृंखला की एक दिव्य प्रभास्वर कड़ी है । आपश्री के सुयोग्य शिष्य मधुर प्रवक्ता प्रवचनभूषण श्री अमर मुनि जी तो हमारी समाज के एक महान् गौरवरत्न हैं। उन्होंने सम्पादन आदि का महान् दायित्व बड़ी शान के साथ निभाया है । अपने दादा गुरुजी के प्रति उनकी यह सेवा वस्तुतः महनीय एवं अभिनन्दनीय है । सन्मति ज्ञानपीठ के ऊपर श्रद्धेय मुनिद्वय की कृपा प्रारम्भ से ही रहती आई है । इस बार भी यह सेवा हमें समर्पित कर ज्ञानपीठ को उपकृत किया है । भविष्य में भी अन्य कोई सेवा आपसे प्राप्त कर हमें प्रसन्नता होगी ।Page Navigation
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