Book Title: Prameyratnamala
Author(s): Shrimallaghu Anantvirya, Rameshchandra Jain
Publisher: Bharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad

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Page 12
________________ प्रस्तावना भारतीय दर्शन में जैनदर्शन की परम्परा भारतीय दर्शन आस्तिक और नास्तिक दो भागों में विभाजित है। ईश्वर, आत्मा, परलोक आदि को जो मानता है बह आस्तिक और जो इन्हें नहीं मानता है, वह नास्तिक कहा जाता है। इस अपेक्षा विचार करने पर चार्वाक दर्शन को छोड़कर शेष भारतीय दर्शन आस्तिक हैं । चार्वाक चूंकि ईश्वर, आत्मा, परलोकादि को नहीं मानता है, अतः उसे नास्तिक कहकर प्रायः प्रत्येक दर्शन में उसकी आलोचना की गई है। भारतीय दर्शनों में अनेकान्तवाद के कारण जैनदर्शन का विशिष्ट स्थान है । यह परम आस्तिक दर्शन है । जो लोग 'नास्तिको वेदनिन्दकः' कहकर जैनदर्शन को नास्तिक की श्रेणी में लाने की चेष्टा करते हैं, उनकी परिभाषा संकुचित और एकाङ्गी है । जैनदर्शन की परम्परा अनादि है । वर्तमान में यह प्रथम तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव से प्रवाहित होकर चौबीसवें तीर्थंकर भगवान् महावीर तक प्रवाहित होती रही । महावीर के प्रथम शिष्य गौतम गणधर ने उसे द्वादशाङ्ग में निबद्ध किया। इन बारह अंगों में से ग्यारह में तो स्वसमय का प्रतिपादन था, किन्तु बारहवें दृष्टिवाद में ३६३ मतों का स्थापनापूर्वक निवारण था । दृष्टिवाद अङ्ग का अधिकांश भाग लुप्त हो गया। फिर भी पूर्व परम्परा से जो कुछ अवशिष्ट रहा, उसी के आधारण न्यायशास्त्र के धुरीणों ने अपना प्रामाद खड़ा किया और तत्कालीन अन्य दार्शनिकों के तर्क-वितर्कों से जबर्दस्त लोहा लिया। आचार्य कुन्दकुन्द कुन्दकुन्द विक्रम की प्रथम शताब्दी के आचार्यरत्न माने जाते है। जैन परम्परा में भगवान् महावीर और गौतम गणधर के बाद कुन्दकुन्द का नाम लेना मङ्गलकारक माना जाता है । उनके द्वारा प्रणीत ग्रन्थ निम्नलिखित हैं १. नियमसार, २. पंचास्तिकाय, ३. प्रवचनसार, ४. समयसार, ५. बारस अणुवेक्खा, ६. दंसण पाहुड, ७. चरित्त पाहुड, ८. सुत्त पाहुड, ९. बोधपाहुड, १०. भावपाहुड, ११. मोक्ख पाहुड, १२. सील पाहुड, १३. लिंग पाहुड, १४. १. डॉ० लालबहादुर शास्त्री : आचार्य कुन्दकुन्द और उनका समयसार पृ० १२१ । २. मङ्गलं भगवान्वीरो मङ्गलं गौतमो गणी । मङ्गलं कुन्दकुन्दाद्यो जैनधर्मोऽस्तु मङ्गलम् ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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