Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 8
________________ [५] उसी नगरीमें वह पूर्ण भी हो गया। तीन वर्षों के अनंतर २५०० वें वीर निर्वाण महोत्सव पर प्राचार्य संघका पदार्पण भारत की राजधानी देहली में हुआ, तब परम पूज्या प्रायिकारत्न विदुषी ज्ञानमति माताजी, श्वेतांबर साधु सुशीलकुमारजी आदिके साग्रह अभिप्राय हुए कि प्रमेयकमलमार्तण्डका भाषानुवाद मुद्रित होना चाहिये, क्योंकि दि० जैन माणिकचंद परीक्षालय आदिमें शास्त्री परीक्षा में यह ग्रन्थ नियुक्त है, श्वेताम्बर जैन के यहां भी न्याय परीक्षा के पाठ्य पुस्तकोंमें है इत्यादि । इस बातपर विचार करके जिनमति माताजीने भाषानुवादका संशोधन चालू किया, बीचमें दो मास स्वास्थ्य खराब होनेसे कार्य रुक गया । देहलीके अनंतर संघका चातुर्मास सहारनपुर [ उत्तर प्रदेश ] हुमा, वहां पर सिद्धांत भूषण पंडित रतनचंदजी मुख्तार, पंडित अरहदासजी आदिने अनुवादके विषय में सुझाव दिये, अध्यात्मप्रिय पंडित नेमिचंदजीने प्रत्येक विषयका परमतानुसार पूर्वपक्ष लिखनेका आग्रह किया, इसतरह पूर्वोक्त अनुवादमें संवर्धन करते हुए दुबारा अनुवाद करनेके समानही हो गया। माताजीने जिन जैनेतर ग्रन्थोंका उद्धरण लेकर पूर्व पक्ष लिखा है उनका परिचय इसप्रकार है: (१) न्यायमंजरी-यह ग्रन्थ गौतम सूत्रकी तात्पर्य विवृत्ति सहित है. श्री काशी संस्कृत ग्रन्थमालाका १०६ पुष्प है. इसके कर्ता जयन्तभट्ट हैं । प्रकाशक चौखंबा संस्कृत सीरीज ऑफिस, वाराणसी। (२) न्यायबिन्दु टीका--आचार्यधर्मोत्तर रचित है, समीक्षात्मक भूमिका, भाषानुवाद, व्याख्यानात्मक टिप्पणीसे युक्त है डा० श्रीनिवास शास्त्री द्वारा संपादित है । प्रकाशक-साहित्यभंडार, मेरठ, प्रथम संस्करण । (३) सांख्यकारिका-हिन्दी अनुवाद सहित, सांख्यीय साधन मार्ग, तत्त्व परिचय एवं तुलनात्मक सामग्रीसे संबलित, प्रणेता श्री राम शंकर भट्टाचार्य । (४) वाक्यपदीयम्-ब्रह्मकाण्ड युक्त है, संस्कृत प्रांग्ल हिन्दी भाषा सहित, भर्तृहरि विरचित है । अनुवाद एवं टीकाकार-वाचस्पति सत्यकाम वर्मा प्राध्यापक देहली विश्वविद्यालय। (५) तर्क भाषा--केशव मिश्र प्रणीत. समीक्षात्मक भूमिका, भाषानुवाद, व्याख्या एवं टिप्पणी सहित है । डॉ. श्री निवास शास्त्री द्वारा संपादित । प्रकाशक रतिराम शास्त्री, साहित्य भंडार, सुभाष बजार, मेरठ । (६) वेदान्त सारः-विवृत्तिसहित सदानंद भोगीन्द्र द्वारा विरचित है । संपादक डॉ. कृष्णकान्त त्रिपाठी । प्रकाशक-रतिराम शास्त्री, साहित्य भंडार सुभाष बजार, मेरठ । (७) न्याय वात्तिकम्-न्याय दर्शन वात्स्यायन के भाष्य से युक्त, परमर्षि भारद्वाज उद्योतकर द्वारा विरचित है । यह पुस्तक पुरानी है, ई• सन् १९१५ का संस्करण है । फतेहपुर ( सीकर ) राजस्थानके श्री सरस्वती पुस्तकालय में यह ग्रन्थ है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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