Book Title: Pramey Kamal Marttand Part 1
Author(s): Prabhachandracharya, Jinmati Mata
Publisher: Lala Mussaddilal Jain Charitable Trust Delhi

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Page 7
________________ अनुवादके पूर्व द्वादशांगवाणीमें दृष्टिवाद नामक जो अंतिम अंग है उससे न्याय शास्त्र प्रसृत हुआ है, न्याय शास्त्रकी आधारशिला स्याद्वाद अनेकान्त है । न्याय शास्त्र सिद्धांतों को सिद्ध करने के लिये साधन है । प्रस्तुत प्रमेयकमलमार्तण्ड ग्रन्थ इसी न्याय शास्त्रका अवयव है, इसग्रन्थका मूलस्रोत माणिक्यनंदी प्राचार्य द्वारा विरचित परीक्षा मुख नामा सूत्र बद्ध लघुकाय शास्त्र है, मुख शब्दका अर्थ द्वार होता है प्रमाणादिकी परीक्षा करने रूप प्रासाद में प्रवेश पाने के लिये यह द्वार स्वरूप है अत: इसका सार्थक नाम परीक्षामुख है, इसी पर प्रभाचन्द्राचार्य ने विशाल काय [ करीब १२ हजार श्लोक प्रमाण ] टीका स्वरूप प्रमेयकमलमार्तण्ड ग्रन्थ की रचना की है जो भव्य जीवोंके नाना प्रकारके मिथ्याभिनिवेश रूपी अंधकारको नष्ट करनेके लिये 'मार्तण्ड" (सूर्य) सदृश है। प्रमेय कमल मार्तण्ड के अनुवादका बीजारोपण राजस्थान में विशिष्ट नगरी टोंक है, यहांपर शहर के बाहर एक मनोरम नसियां (निषिधिका) बनी हुई है जिसमें भूगर्भ से प्राप्त जिन बिब विराजमान हैं, प्राचार्य धर्मसागर महाराजके शिष्य पूज्य श्री शीतलसागरजी मुनिराजने अपने भक्त प्रत्याख्यान सल्लेखना द्वारा इस नसियां को सार्थक नाम [निषिधिका शब्दका अपभ्रंश नसियाँ है निषिधिका शब्दके अनेक अर्थोमें एक अर्थ यह है कि जहांपर किसी साधुका सन्यास पूर्वक मरण हो उस स्थानको निषिद्या कहते हैं ] वाली बना दिया है। इस स्थान पर प्राचार्य श्री का विशाल संघके साथ चातुर्मास हो रहा था संघकी प्रमुख प्रायिका रत्न विदुषी ज्ञानमति माताजीके पाद मूलमें अनेक बाल ब्रह्मचारी बाल ब्रह्मचारिणियां अध्ययन कर रही थीं, पूज्य माताजीरूपी हिमाचलसे प्रसृत ज्ञान गंगामें अवगाहन करके अपने अनादि कालीन अविद्या मैल को धो रही थीं, अध्ययन एकाँगीण न होकर सर्वांगीण होता था जिसमें सिद्धांत. साहित्य, व्याकरण, न्याय आदि विषय अन्तनिहित थे, न्याय के अध्ययन ग्रन्थों में प्रमेय कमल मार्तण्ड ग्रन्थ भी था, यह सिर्फ संस्कृत भाषामें होने के कारण हम लोगोंको समझने में कठिन हो रहा था, पूज्या माताजीकी शिष्या प्रायिका जिनमति माताजीसे मैंने प्रार्थना करी कि इस ग्रन्थकी हिन्दी भाषा नहीं होनेसे शास्त्री परीक्षामें कठिनता होगी अतः इसका सारांश हिन्दी में लिखिये जिससे सुविधा हो आपको बार बार विषय पूछना न पड़े [ मेरा विशेष अध्ययन जिनमति माताजी के पास चलता था ] जिनमति माताजीने मेरी प्रार्थनाको स्वीकार कर भाषानुवाद प्रारम्भ कर दिया। ___ अनुवाद करते समय यह लक्ष्य नहीं था कि इसको मुद्रित कराना है, लक्ष्य सिर्फ इतना ही था कि भाषानुवाद होनेसे विषयका स्पष्टीकरण हो जायगा । अनुवाद का प्रारम्भ होकर अष्ट मासमें Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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