________________
प्राकृतप्रकाशेहै। इन चार प्रकारों में सबका अन्तर्भाव हो जाता है। वह बहुल जन्य कार्य महा. कवियों के प्रयोग से अथवा लोक-व्यवहृत-शब्दानुसार संस्कृत शब्दों में स्वयं कल्पना कर लेना। क्योंकि प्राकृतसूत्र पाणिनीय प्रयोगों का ही अनुसरण करते हैं। __अच्-विशेष-(राज ऋषिः)२ से जलोप । १० से इकार ।२६ से ष को साइ मिलकर एकार । राएसी । पक्ष में-राअइसी । (व्यास ऋषिः) से यलोप । वासेसी, वासइसी। (कर्णपूरः)५ से रेफलोप। ६ से द्विस्व । २ से वलोप । अ+ऊ मिल कर एकार। कण्णेरो, कण्णऊरो। पूर्ववत्-(चक्रवाकः) चकाओ, प्रायग्रहण से वलोप । नहीं तो चक्कवाओ । एवम्, (कुम्भकारः) कुंभारो, कुंभआरो। (अन्धकारः) अंधारो, अंधारो। (मम अपि) पूर्व के साथ दीर्घ । ममावि । अकार का लोप, ममवि । १८ से पको व । एवम्-(केन अपि) २५ से न को ण । केणावि, केणवि। कहीं पूर्व स्वर को विकल्प से दीर्घ हो । (वारिमयी) से यलोप, वारीमई । पक्ष में वारिमई। एवम्-(वृत्तिमूलम् )३ से दोनों तकारों का लोप।९ से ऋ को अकार । ३५ प्रकृत से विकल्प से इकार को दीर्घ। वईमूलं, वइमूलं । अथवा (वृत्तिमूलम् ) का पूर्ववत् साधुत्व । (वेणुवनम् )२५ से न को ण। विकल्प से दीर्घ । वेणूवणं, वेणुवणं । कहीं पर विकल्प से हस्व होगा। (यमुनातटम् ) २४ से य को ज । 'यमुनायां यस्य' से मकारलोप। २५ से न को ण । २ से तकारलोप। १९ सेट को ड । ३५ से विकल्प से हस्व । जउणअडं। जउणाअडं। एवम् (नदीस्रोतः) ५से रेफलोप । ४१से तद्विस्व । ३५ से विकल्प से हस्व । जइसोत्तो, णईसोत्तो। (वधूमुखम् )२३ से ध और ख को हकार । ३५ से विकल्प से हस्व । बहुमुहं, बहुमुहं । कहीं ओकार को विकल्प से अकार । (सरोरुहम्) सररुह, सरोरुहं। (मनोहरम् ) मणहरं, मणोहरं । (शिरोवेदना) सकार, दलोप, ण आदेश पूर्ववत् । 'एत इद०' (+३५) से ए को इकार । प्रकृत सूत्र से ओ को अकार । सिरविअणा, सिरोविक्षणा । कहीं बोकार को अकारादेश नहीं होगा। (मनोरथः) मणोरहो। (मनोभवः) मणोहो। उक्त सूत्र से हकार। __ लोपविशेष-कहीं पदान्तस्थ पूर्व प्रकार का विकल्प से लोप हो । (राजकुलम्) २सेज और क का लोप । प्रकृत से अकार का लोप। राउलं । रामउलं । (पाद: पतनम् ) पापडणं, पाअपडणं । (पादपीठम् ) 'ठो ढः' से ठ को ढ । पापीढं, पाअपीठं । कहीं हल् पर होने पर भी, आदिस्थ अच् का नित्य लोप हो । एत्थ के एकार का लोप होगा। तुम्हे, अम्हे का साधुत्व पञ्चमपरिच्छेद में है। (यूयमत्र) तुम्हे एत्थ, तुम्हेत्थ । अम्हे एस्थ, अम्हेत्थ । (ब्राह्मणः +अत्र) बम्हणोस्थ । प्रायः एक से पर अकार का लोप होता है। यहीं नहीं होगा-(हरिः+ अत्र)हरी एत्थ । कहीं अच परे होने पर भी नित्य अकार का लोप होता है। (गज+इन्द्रः)२ से जलोप।५ से रेफलोप। नित्य अकार का लोप। गइंदो। (मृग+इन्द्रः) ९से ऋ को अकार। पूर्ववत् रेफ-गकार का लोप। नित्य अकार का लोप। मइन्दो। (उप+इन्द्रः) १८ से प को व । अलोप। उविंदो । (दीप+उज्वलः)५से व लोप । ६ से जद्वित्व । प को व । अकारलोप । दीवुजलो। (मकरंद+उद्यानम्) २ से कलोप । ३२ से च को ज आदेश । ६ से द्वित्व । अकारलोप । मभरंदुजाणं। (प्रमदा + उद्यानम्) ५ से रेफलोप। अन्य कार्य पूर्ववत् । पमदुजाणं। (महा+उत्सवः) आकारलोप। महसवो। उत्सवशब्द के