Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 67
________________ पाठ निर्धारित हुए वे महाराष्ट्री प्राकृत से प्रभावित हैं / फिर भी उनकी महाराष्ट्री भी अर्धमागधी और शौरसेनी से प्रभावित है, अत: उसे विद्वानों ने जैन महाराष्ट्री प्राकृत कहा है। इसी प्रकार अचेल धारा की दिगम्बर और यापनीय परम्परा के आगम तुल्य ग्रन्थों की भाषा भी अर्धमागधी से प्रभावित होने के कारण जैन शौरसेनी कही जाती है। आगमों की विषय-वस्तु सरल है आगम साहित्य की विषय-वस्तु मुख्यत: उपदेशपरक, आचारपरक एवं कथापरक है / भगवती के कुछ अंश, प्रज्ञापना, अनुयोगद्वार जो कि अपेक्षाकृत परवर्ती है, को छोडक़र उनमें प्राय: गहन दार्शनिक एवं सैद्धान्तिक चर्चाओं का अभाव है। विषय-प्रतिपादन सरल, सहज और सामान्य व्यक्ति के लिए भी बोधगम्य है। वह मुख्यत: विवरणात्मक एवं उपदेशात्मक हैं। इसके विपरीत शौरसेनी आगमों में आराधना और मूलाचार को छोडक़र लगभग सभी ग्रन्थ दार्शनिक एवं सैद्धान्तिक चर्चा से युक्त है। वे परिपक्व दार्शनिक विचारों के परिचायक हैं। गुणस्थान और कर्मसिद्धान्त की वे गहराइयाँ, जो शौरसेनी आगमों में उपलब्ध है, अर्धमागधी आगमों में उनका प्रायः अभाव ही है। कुन्दकुन्द के समयसार के समान उनमें सैद्धान्तिक दृष्टि से अध्यात्मवाद के प्रतिस्थापन का भी कोई प्रयास परिलक्षित नहीं होता। यद्यपि ये सब उनकी कमी भी कही जा सकती है, किन्तु चिन्तन के विकास क्रम की दृष्टि से विचार करने पर स्पष्ट रूप से यह फलित होता है कि अर्धमागधी आगम साहित्य प्राथमिक स्तर का होने से प्राचीन भी है और साथ ही विकसित शौरसेनी आगमों के लिए आधार-भूत भी। समवायांग में जीवस्थानों के नाम से 14 गुणस्थानों का मात्र निर्देश है, जबकि षटखण्डागम जैसा प्राचीन शौरसेनी आगम भी उनकी गम्भीरता से चर्चा करता है। मूलाचार, भगवती आराधना, कुन्दकुन्द के ग्रन्थ और गोम्मटसार आदि सभी में गुणस्थानों की विस्तृत चर्चा है। चूकि तत्त्वार्थ में गुणस्थानों की चर्चा का एवं स्याद्वाद-सप्तभंगी का अभाव है, अत: वे सभी रचनाएँ तत्त्वार्थ के बाद की कृतियाँ मानी जा सकती हैं। आगम साहित्य की विशेषता (अ) तथ्यों का सहज संकलन अर्धमागधी आगमों में तथ्यों का सहज संकलन किया गया है अत: अनेक [63.]

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