Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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________________ जिट्ठा सुदंसण जमालि अणुज सावत्थि तिंदुगुज्जाणे। पंचसयाय सहस्सं ढकेण जमालि मुत्तूण।। रायगिहेगुणसिलए वसु चउदसपुब्वितीसगुत्ताओ। आमलकप्पा नयरि मित्तसिरी कूरपिंडादि।। सियवियपोलासाढे जोगे तद्दिवसहिययसूलेय। सोहम्मि नलिणगुम्मेरायगिहेपुरिय बलभद्दे।। मिहिलाए लच्छिघरेमहगिरि कोडिन्न आसमित्तो। णेउणमणुप्पवाएरायगिहेखंडरक्खाया। नइखेडजणव उल्लग महगिरिधणगुत्त अजगंगेय। किरिया दोरायगिहेमहातवोतीरमणिनाए।। पुरमंतरंजिभुयगुह बलसिरि सिरिगुत्त रोहगुततेय। परिवाय पुट्टसालेघोसण पडिसेहणावाए। विच्छ्य सप्पेमूसग मिगी वराही य कागि पोयाई। एयाहिं विज्जाहिं सोउपरिव्वायगोकुसलो।। मोरिय नउलि बिराली वग्घी सीही य उलुगिओवाइ। एयाओविजाओगिण्ह परिव्वायमहणीओ।। दसपुरनगरुच्छुघरेअज्जरक्खिय पुसमित्तत्तियगंच। गुट्ठामाहिल नव अट्ठ सेसपुच्छा य विंझस्सा। पुट्ठोजहा अबद्धोकंचुइणं कंचुओसमन्नेइ। एवंपुट्ठमबद्धं जीवं कम्मं समन्नेछ।। पच्चक्खाणं सेयं अपरिमाणेण होइ कायव्वं। जेसिं तु परीमाणं तं दुर्ल्ड होइ आसंसा।। रहवीरपुरं नयरं दीवगमुजाण अज्जकण्हे। सिवभूइस्सुवहिमिपुच्छाथेराण कहणाया। - उत्तराध्ययननियुक्ति, 165-178 18. वहीं, 29 19. दशवैकालिकनियुक्ति, गाथा 309-326 20. उत्तराध्ययननियुक्ति, 207 [114]

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