Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

View full book text
Previous | Next

Page 134
________________ काष्ठासंघ माथुरगच्छ की पट्टावली, काष्ठासंघ लाडबागडगच्छ पुन्नाटगच्छ की पट्टावली आदि। इनके अतिरिक्त कुछ तीर्थमालाएँ और विज्ञप्तिपत्र भी संस्कृत में लिखित है जिनमें अनेक ऐतिहासिक तथ्य समाहित है, साथ ही अनेक प्रतिमा या मूर्ति लेख भी संस्कृत में मिलते है। अनेकार्थकसंधानकाव्य भी जैनाचार्यो के द्वारा संस्कृत में लिखित है यथाद्विसन्धानमहाकाव्य, सप्तसंधानकाव्य आदि। इनके अतिरिक्त समयसुन्दरगणि (17वी शती) ने एक ही पद 'राजनोददते सौख्यम्' के आठ लाख अर्थ करते हुए अष्टलक्षी नामक ग्रन्थ संस्कृत भाषा में लिखा था। संस्कृत की गद्यकाव्य शैली एवं चम्पूकाव्य शैली में जैनाचार्यो के निम्न ग्रन्थ मिलते है- तिलकमंजरी, तिलकमंजरीकथासार, गद्यचिन्तामणि आदि। चम्पूकाव्यो में कुवलयमाला, यशस्तिलकचम्पू, जीवनधरचम्पू, पुरूदेवचम्पू, चम्पूमण्डन आदि ग्रन्थ जैनाचार्यो द्वारा रचित है, गीतिकाव्य, रसमुक्तक गीतिकाव्य दूतकाव्य या सन्देशकाव्य (खण्डकाव्य) जैनाचार्यों ने लिखे है, यथा पाश्र्वाभ्युदय नेमिदूत, जैनमेघदूत, शीलदूत, पवनदूत आदि अनेक दूतकाव्य। इसके अतिरिक्त जैनाचार्यों ने संस्कृत में पादपूर्ति साहित्य भी लिखा है। इसमें अनेक ग्रन्थ मेधदूत की पादपूर्ति के रूप में लिखे गये। साथ ही जैनाचार्यों ने कुछ सुभाषितों और अनेक स्तोत्र भी संस्कृत भाषा में लिखे है। उनके स्तोत्र साहित्य को अनेक संग्रह ग्रन्थों में समाहित किया गया है। ये स्तुति-स्तोत्र सहस्त्रों की संख्या में है। साथ ही दृश्यकाव्य के रूप में अनेक नाटको की रचना भी रामचन्द्र आदि जैनाचार्यों ने की है जैसे- सत्यहरिशचन्द्र, नलविलास, मल्लिकामकरन्द, कौमुदीमित्राणन्द, रघुविलास, निर्भयभीमव्यायोग, रोहिणीमृगांक, राघवाभ्युदय, यादवाभ्युदय, वनमाला, चन्द्रलेखाविज्यप्रकरण, प्रबद्धरौहिणेय, द्रौपदीस्वयंवर, मोहराजपराजय, मुद्रितकुमुदचन्द्र, धर्माभ्युदय, इमामृत, हम्मीरमदमर्दन, करूणावज्र युध, अंजनापवनंजय, सुभद्रानाटिका, विक्रान्तकौरव, मैथिलीकल्याण, ज्योतिष्प्रभानाटक, रम्भामंजरी, ज्ञानचन्द्रोदय, ज्ञानसूर्योदय आदि। आगमिक व्याख्याओं दर्शन, काव्य नाटक, दूतकाव्य एवं कथा साहित्य के अतिरिक्त भी विविध विषयों पर भी जैनाचार्यो एवं जैन लेखको ने संस्कृत में ग्रन्थ लिखे है। जैन साहित्य के बृहद् इतिहास भाग पाँच में उनकी सूचि उपलब्ध है। उस आधार पर हम यहाँ मात्र उनका नाम निर्देश कर रहे है। [130]

Loading...

Page Navigation
1 ... 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150