Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
View full book text
________________ * उज्जेणीए जोजंभगोहिं आणक्खिऊण थुयमहिओ। अक्खीणमहाणसियं सीहगिरिपसंसियं वंदे।। जस्स अणुण्णाए वायगत्तणेदसपुरम्मिणयरम्मि। देवेहिं कया महिमा, पयाणुसारिणमंसामि।। जोकन्नाइघणेण य, णिमंतिओंजुव्वणम्मि गिहवइणा। नयरम्मि कुसुमनामे, तंबइररिसिंणमंसामि।। जणुद्धारआ विजा, आगासगमा महारिण्णाओ। वंदामि अज्जवइरं, अपच्छिमोजोसुयहराण।। ___ - वही, गाथा 764-769 (ग) अपहुत्तेअणुओगे, चत्तारि दुवारभासई एगो। पुहुताणुओगकरणे, तेअत्थ तओउवोच्छिन्ना।। देविंदवंदिएहिं, महाणुभागेहिंरक्खिअन्जेहि। जुगमासज्ज विभत्तो, अणुओगेतोकओचउहा।। . माया यरुद्दसोमा, पियायनामेण सोमदेव त्ति। भाया यफगुरक्खिय, तोसलिपुत्ता यआयरिआ॥ . णिज्जवणभद्रुत्ते, वीसं पढणं चतस्स पुव्वगयं। पव्वाविओयभाया, रक्खिअखमणेहिंजणओय। - वही, गाथा 773-776 35. जह जह पएसिणी जाणुगम्मि पालित्तओभमाडे। तह तहसीसेवियणा, पणस्सइ मुरुंडरायस्स। . - पिण्डनियुक्ति, गाथा-498 36. नइ कण्ह-विन्न दीवे, पंचसया तावसाण णिवसंति। पव्वदिवसेसु कुलवइ, पालेवुत्तार सक्कारे।। जण सावगाण खिंसण, समियक्खण माइठाण लेवेणा सावय पयत्तकरणं, अविणय लोए चलणधोए।। पडिलाभिय वच्चंता, निव्वुड निइकूलमिलण समियाओ। विम्हिय पंचसया तावसाणपव्वज साहाया। - पिण्डनियुक्ति, गाथा 503-505 [116]

Page Navigation
1 ... 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150