Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 122
________________ -उद्धृत बृहत्कल्पसूत्रम भाष्य, षष्ठ विभाग प्रस्तावना, पृ. 12 49. वही, पृ.2 50. बृहत्कल्पसूत्रम, भाष्य षष्ठविभाग, आत्मानंद जैन सभा, भावनगर, पृ. 11 51. सावत्थी उसभपर सेयविया मिहिल उल्लुगाती। पुदिमंतरंजि दसपुररहवीरपुरं च नगराई।। चोद्दस सोलस बासा चोद्दसवीसुत्तराय दोण्णि सथा। अट्ठावीसोय दुवेपंचेवसया उचोयाला।। ____ - आवश्यकनियुक्ति, गाथा 81-82 52. रहवीरपुरं नयरं दीवगमुजाण अज्जकण्हेआ सिवभूइस्सवहिमिपुच्छाथोराण कहणाय।। - उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 178 53. स्वयं चतुर्दशपूर्वित्वेऽपि यच्चतुर्दशपूर्युपादानं तत् तेषामपि षट्स्थानपतितत्वेन शेषमाहात्म्यस्थापनपरमदुष्टमेव, भाष्यगाथा वा द्वारगाथाद्वयादारभ्य लक्ष्यन्त इति प्रेर्यानवकाश एवेति।। - उत्तराध्ययन टीका, शन्त्याचार्य, गाथा 233. 54. एगभविए य बद्धाउए यअभिमुहियनामगोएय। एते तिन्निविदेसादव्वंमिय पांडरीयस्स।। ___ - सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा 146 55. येचादेशाः यथा-आर्यमंगराचार्यस्त्रिविधिं शंखमिच्छिति- एकभविकं द्य बद्धायुष्कमभिमुखनामगोत्रं च, आर्यसमुद्रोद्विविधम्- बद्धायुष्कमभिमुखनामगोत्रं च, आर्यसुहस्ती एकम् - अभिमुखनामगोत्रमितिः। ___ - बृहत्कल्पसूत्रम्, भाष्य भाग 1, गाथा 144 56. वही, षष्ठविभाग, पृ.सं. 15-17 57. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 1252-1260 58. वही, गाथा 85 59. जत्थय जोपण्णवओकस्सवि साहइ दिसासु य णिमित्तं। जत्तोमुहोय ढाईसापुव्वापच्छवोअवरा।। __- आचारांगनियुक्ति, गाथा 51 60. सप्ताश्विवेदसंख्य, शककालमपास्य चैत्रशुक्लादौ। [118]

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