Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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________________ 37. (अ). वी, गाथा 505. (ब). नंदीसूत्रस्थविरावली गाथा, 36 (स). मथुरा के अभिलेखों में इस शाखा का उल्लेख ब्रह्मदासिक शाखा के रूप में मिलता है। 38. उज्जेणी कालखमणा सागरखमणा सुवण्णभूमीए। इंदोआउयसेसं, पुच्छइ सादिव्वकरणं च।। - उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 119 39. अरहंतेवंदित्ता चउदसपुव्वी तहेव दसपुवी। एक्कारसंगसुत्तत्थधारए सव्वसाहूया। ___- ओघनियुक्ति, गाथा 1 40. श्रीमती ओघनियुक्ति, संपादक-श्रीमद्विजयसूरीश्वर, . प्रकाशन- जैन ग्रंथमाला, गोपीपुरा सूरत, पृ. 3-4 41. जेणुद्धरिया विजाआगासगमा महापरिनाओ। _ वंदामिअज्जवइरं अपच्छिमोजोसुअहराण।। _ - आवश्यकनियुक्ति गाथा, 769 42. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 763-774 . 43. अपुहुत्तपुहुत्ताई निद्दिसिउं एत्थ होइ अंहिगारो। चरणकरणाणुओगेण तस्स दारा इमेहुति।। -दशवैकालिक नियुक्ति, गाथा 4 44. ओहेण उ निजुत्तिं वुच्छंचरणकरणाणुओगाओ। अप्पक्खरं महत्थं अणुण्हत्थं सुविहियाण।। - ओघनियुक्ति, गाथा 2 45. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 778-783 46. उत्तराध्ययननियुक्ति, गाथा 164-178 47. एगभविएयबद्धाउए य अभिमुहियनामगोएय। . एतेतिन्निवि देसा दव्वंमि यपोंडरीयस्स।। - सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा 146 48. उत्तराध्ययन टीकाशान्त्याचार्य, [117]

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