Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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________________ 21. दशवैकालिकनियुक्ति, 161-163 22. आचारांगनियुक्ति, गाथा 5 23. (अ) दशवैकालिकनियुक्ति, 79-88 (ब) उत्तराध्ययननियुक्ति, 143-144 24. जोचेव होइ मुक्खोसा उ विमुत्ति पगयं तु भावेणं। देसविमुक्का साहू सव्वमुिक्का भवेसिद्धा।। - अचारांगनियुक्ति, 331 25. उत्तराध्ययननियुक्ति, 497-92 26. सूत्रकृतांगनियुक्ति, गाथा 99 27. दशवैकालिकनियुक्ति, गाथा 3 28. सूत्रकृतांगनियुक्ति, 127 29. उत्तराध्ययननियुक्ति, 267-268 . 30. दशाश्रुतस्कंधनियुक्ति, गाथा 1 31. तहविय कोई अत्थोउप्पजति तम्मितंमि समयंमि पुव्वभणिओअणुमत्तोअहोइइसिभासिएसु जहा।। - सूत्रकृतांगनियुक्ति, 1892 32. क. बृहत्कल्पसूत्रम्, पृष्ठ विभाग, . प्रकाशक- श्री आत्मानंद जैन सभा भावनगर, प्रस्तावना, पृ. 4,5 33. वही आमुख, पृ.2 34. (क) मूढणइयं सुयंकालियं तुणणया समोयरंति इह। अपुहुत्तेसमोयारो, नस्थिपुहुत्तेसमोयारो।। जावंति अज्जवइरा, अपुहुत्तं कालियाणुओगेया तेणाऽऽरेण पुहुत्तं, कालियसुय दिट्ठिवाए या।। - आवश्यकनियुक्ति, गाथा 762-763 (ख) तुंबवणसन्निवेसाओ, निग्गयं पिउसगासमल्लीण। छम्मासियं छसुजयं, माऊय समन्नियं वंदे।।। जोगुज्झएहिं बालो, निमंतिओभोयणेण वासंते। णेच्छइ विणीयविणओ, तंवइररिसिंणमंसामि।। [115]

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