Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur
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________________ 11. गोविंदो... पच्छातेण एगिदिव जीव साहणं गोविंद निजुतिकया। -निशीथ भाष्य गाथा 3656, निशीथचूर्णि, भाग 3, पृ. 260, भाग-4, पृ. 96 12. नंदीसूत्र, - (सं. मधुकरमुनि) स्थविरावली गाथा 41 13. (अ) प्राकृत साहित्य का इतिहास, डॉ.जगदीशचंद्र जैन, पृ. 190 (ब) जैनसाहित्य का बृहद् इतिहास, डॉ. मोहनलाल मेहता, -पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी, भाग 3, पृ. 6 14. आवश्यकनियुक्ति, गाथा 84-85 15. वही, 84 16. बहुरयपएसअव्वत्तसमुच्छादुगतिगअबद्धिया चेव। सत्तेए णिण्हणाखलु तित्थंमि उवद्धमाणस्सा बहुरयजमालिपभवाजीवपएसा येतीसगुत्ताओ। अव्वत्ताऽऽसाढाओसामुच्छेयाऽऽसमित्ताओ।। गंगाओदोकिरिया छलुगा तरासियाण उप्पत्ती। थेराय गोट्ठमाहिलपुट्ठमबद्धं परुविंति।। सावत्थी उसभपुर सेयविया मिहिल उल्लुगातीरं। पुरमिंतरंजि दसपुर-रहवीरपुरंच नगराई।। चोद्दस सोलस वासाचोद्दसवीसुत्तरायदोण्णि सया। अट्ठावीसा यदुवेपंचेव सया उचोयाला।। पंचसया चुलसीया छच्चेव सयाणवोत्तराहोंति। णाणुपत्तीय दुवेउप्पणा णिव्वुए सेसा।। एवं एए कहियाओसप्पिणीए उ निण्हवा सत्त। वीरवरस्सपवयणेसेसाणंपव्वयणेणत्थिा। - वही, 778-784 17. बहुरय जमालिपभवाजीवपएसा य तीसगुत्ताओ। अव्वत्ताऽऽसाढाओसामुच्छेयाऽऽसमित्ताओ।। गंगाए दोकिरिया छलुगा तेरासिआण उप्पत्ती। थेराय गुट्ठमाहिलपुट्ठबद्धं परुविंति।। [113]

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