Book Title: Prakrit evam Sanskrit Sahitya ke Jain Aalekh
Author(s): Sagarmal Jain
Publisher: Prachya Vidyapith Shajapur

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Page 116
________________ संदर्भ 1. (अ) निज्जुता तेअत्था, जंबद्धा तेण होइ णिज्जुत्ती। - आवश्यकनियुक्ति, गाथा 88 (ब) सूत्रार्थयोः परस्परनिर्योजन सम्बन्धनं नियुक्तिः - आवश्यकनियुक्ति टीका हरिभद्र, गाथा 83 की टीका 2. अत्थाणं उग्गहणं अवग्गहं तह विआहणं इह। . - आवश्यकनियुक्ति, 3... 3. ईहाअपोह वीमंसा, मग्गणा यगवेसणा। सण्णासई मई पण्णासव्वं आभिनिबोहिय।। __- वही, 12 4. आवस्सगस्स दसकालिअस्स तह उत्तरज्झमायारे। सुयगडे निज्जुतिं वुच्छामितहादसाणं च।। कप्पस्सय निज्जुतिं ववहारस्सेव परमणिणस्सा सूरिअपण्णत्तीए वुच्छं इसिभासियाणं च।। __- वही, 84-85 5. इसिभासियाई -(प्राकृत भारती, जयपुर), भूमिका, सागरमल जैन, पृ. 93 6. बृहत्कथाकोष -(सिंघी जैन ग्रंथमाला) प्रस्तावना, ए.एन. उपाध्ये, पृ.31 7. आराधना... तस्य नियुक्तिराधनानियुक्तिः। -- मूलाचार, पंचाचाराधिकार, गा. 279 की टीका (भारतीय ज्ञानपीठ, 1984) 8. गोविंदाणं पिनमोअणुओगेविउलधारणिंदाणं। - नंदीसूत्र स्थविरावली, गा.41 9. व्यवहारभाष्य, भाग6, गा. 267-268 10. सोय हेउगोवएसोगोविंदनिज्जुत्तिमादितो...। दरिसणप्पभावगाणि सत्थाणिजहा गोविंदनिज्जुत्तिमादी। - आवश्यकचूर्णि भाग 1, पृ.31 एवं 353 भाग 2, पृ. 201, 322 [112]

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